हिन्दी पत्रकारिता दिवस ! पत्रकारों ने दी स्वतंत्रता आन्दोलन को नयी धार

गाजीपुर (उत्तर प्रदेश) 30 मई 2018 । पत्रकार समाज का प्रहरी, दिग्दर्शक व स्वछन्द चिंतक होता है। जिसका दायित्व समाज के प्रति अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। पत्रकार का कार्य सदैव संकीर्ण भावनाओं से ऊपर उठकर निष्पक्ष लेखनी द्वारा सही व स्पष्ट विचार जन जागरण हेतु सामने लाना होता है।

हिंदी पत्रकारिता और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का चोली दामन का साथ रहा है। हिंदी पत्रकारिता ने जनता की स्वतंत्रता की आकांक्षाओं और अभिलाषाओं को वाणी प्रदान कर स्वतंत्र संग्राम का मार्ग प्रशस्त किया है। हिंदी पत्रों ने राष्ट्रीयता, स्वतंत्रता एवं समाज सुधार का खुला समर्थन किया।हिंदी पत्रकारिता ने ही अनेकानेक लोगों को जननायक और युग पुरुष बना दिया जो अपनी लेखनी के बल पर अमर हो गये। अंग्रेजी दासता की बेड़ियों से मुक्त होने की कसक के साथ आम जन को जागृत करने के उद्देश्य से आरंभ हुई पत्रकारिता एक दुरुह , दुष्कर व चुनौतीपूर्ण कार्य था ,जहां पग पग पर कठिनाइयों का सामना करना था।इसे स्वीकार कर हिंदी के पत्रकारों ने देश के स्वतंत्रता आंदोलन में स्वयं अभावग्रस्त रहकर यातनाएं सही, जेल गए फिर भी वह निरंतर अपने पथ पर आगे बढ़ अपने कार्यों को गति देते रहे। स्वाधीनता संग्राम के दौरान देश की सोई हुई जनता को जगाने का काम पत्रकारिता के माध्यम से पत्रकारों ने किया जिसके कारण अंग्रेजों को अपनी कार्य प्रणाली में परिवर्तन करना पड़ा।
हिंदी पत्रकारिता का उदय हिंदी प्रदेश से सुदूर कोलकाता से हुआ। कानपुर निवासी पंडित युगल किशोर शुक्ला ने 30 मई 1826 को कोलकाता के कोलूटोला के आमणतल्ला गली से ” उदन्त मार्तण्ड” नामक हिंदी समाचार पत्र का प्रकाशन किया। जिसे देश के प्रथम हिन्दी समाचार पत्र का गौरव मिला। इसीलिए तीस मई को पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है। पत्रकार समाज का प्रहरी दिग्दर्शक व स्वछन्द चिंतक होता है। जिसका दायित्व समाज के प्रति अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। पत्रकार का कार्य सदैव संकीर्ण भावनाओं से ऊपर उठकर निष्पक्ष लेखनी द्वारा सही व स्पष्ट विचार जन जागरण हेतु सामने लाना होता है। इसके उपरांत कोलकाता से ही राजा राममोहन राय ने बंग दूत का प्रकाशन 1830 में किया। जो अंग्रेजी हिंदी बांग्ला तथा फारसी भाषा में प्रकाशित हुआ। स्वतंत्रता आंदोलन से जूझ रहे देश में उस समय दर्जनों समाचार पत्र पत्रिकाएं हिंदी के जाने-माने पत्रकारों द्वारा प्रकाशित की गई, अंग्रेजी शासन के अत्याचार से देश का उद्धार करने वाले नेता अपनी बातों को जनता तक पहुंचाने के लिए इन्हीं समाचार पत्रों को माध्यम बनाया। इन समाचार पत्रों की शक्ति से अंग्रेजी सरकार सदैव आतंकित रखती थी और पत्रकारों को पकड़कर इन अखबारों पर रोक लगाने की कोशिश करती रही। अंग्रेजी हुकुमत की नीतियों के विरुद्ध राजा राज मोहन राय, महात्मा गांधी, पं. मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तम दास टंडन, गणेश शंकर विद्यार्थी, पंडित कमलापति त्रिपाठी, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रताप नारायण मिश्र , अंबिका प्रसाद बाजपेई, मुंशी प्रेमचंद , सम्पूर्णानन्द, रामवृक्ष बेनीपुरी, महादेवी वर्मा सहित सैकड़ों समाजसेवी साहित्यकारों ने अपनी लेखनी से देश की जनता में देश प्रेम की भावना जागृत किया, जिसकी बदौलत देशवासियों में नई चेतना का संचार हुआ और देशवासी मनोवेग से ब्रितानी हुकूमत को उखाड़ फेंकने हेतु निकल पड़े।देश की बदलती आवोहवा को भांप अन्ततः अंग्रेजों को देश छोडऩे हेतु मजबूर होना पड़ा। आज हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर इससे जूड़े सभी कर्मयोगी पत्रकार साथियों को नमन व बधाई ….

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