अलौकिक ! सृष्टि के प्रथम संबाददाता महर्षि नारद जयंती पर शत – शत नमन

मऊ (उत्तर प्रदेश) ,02 मई 2018। हिन्दू पंचाग के अनुसार प्रत्येक ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को नारद जयंती के रूप में जाना जाता है। पुराणों और शास्त्रों की मान्याताओं के अनुसार देवर्षि नारद सृष्टि के पहले संदेश वाहक थे जो एक लोक से दूसरे लोक की परिक्रमा करते हुए सूचनाओं का आदान-प्रदान किया करते थे। सदैव चलायमान रहने वाले महर्षि नारद सदैव ही एक स्थान की बात को दूसरे स्थान के लोग तक पहुंचा कर पत्रकारिता धर्म का पालन किया। पुराणों के अनुसार महर्षि नारद ब्रह्रााजी के मानस पुत्र है।नारद जी भगवान विष्णु के परम भक्त थे और वे हमेशा नारायण-नारायण का जप करते हुए विचरण करते रहते थे। नारद जी को मिले श्राप के कारण वह कभी एक स्थान पर नहीं टिकते थे। असीम ज्ञान के कारण नारद जी का सम्मान ना सिर्फ देवी-देवता बल्कि ऋषि मुनि और असुर भी करते थे।
देवर्षि नारद वेद और उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, इतिहास-पुराणों के विशेषज्ञ, पूर्व कल्पों (अतीत) की बातों को जानने वाले, न्याय एवं धर्म के तत्त्‍‌वज्ञ, शिक्षा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान, संगीत-विशारद, प्रभावशाली वक्ता, मेधावी, नीतिज्ञ, कवि, महापण्डित, बृहस्पति जैसे महाविद्वानोंकी शंकाओं का समाधान करने वाले, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष के यथार्थ के ज्ञाता, योगबल से समस्त लोकों के समाचार जान सकने में समर्थ, सांख्य एवं योग के सम्पूर्ण रहस्य को जानने वाले, देवताओं-दैत्यों को वैराग्य के उपदेशक, क‌र्त्तव्य-अक‌र्त्तव्य में भेद करने में दक्ष, समस्त शास्त्रों में प्रवीण, सद्गुणों के भण्डार, सदाचार के आधार, आनंद के सागर, परम तेजस्वी, सभी विद्याओं में निपुण, सबके हितकारी और सर्वत्र गति वाले हैं।
देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक-कल्याण हेतु सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। शास्त्रों में इन्हें भगवान का मन कहा गया है।
देवर्षि नारद दुनिया के प्रथम पत्रकार या पहले संवाददाता हैं, क्योंकि देवर्षि नारद ने इस लोक से उस लोक में परिक्रमा करते हुए संवादों के आदान-प्रदान द्वारा पत्रकारिता का प्रारंभ किया। इस प्रकार देवर्षि नारद पत्रकारिता के प्रथम पुरोधा पुरुष हैं। जो इधर से उधर घूमते हैं तो संवाद का सेतु भी बनाते हैं। जब सेतु बनाया जाता है तो दो बिंदुओं या दो सिरों को मिलाने का कार्य किया जाता है।
रामावतार से लेकर कृष्णावतार तक नारद की पत्रकारिता लोकमंगल की ही पत्रकारिता और लोकहित का ही संवाद-संकलन है। उनके ‘इधर-उधर’ संवाद करने से जब राम का रावण से या कृष्ण का कंस से दंगल होता है तभी तो लोक का मंगल होता है। अतः देवर्षि नारद दिव्य पत्रकार के रूप में लोकमंगल के संवादवाहक रहे हैं। लोक मंगल के कार्यों में लगे ऐसे दिव्य देव को सादर नमन ……..

रिपोर्ट – अजय राय

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