मां सरस्वती की आराधना का पर्व है बसंत पंचमी


    बसंत पंचमी पर्व का सनातनी धर्मानुयायियों में विशेष महत्व है। अन्य सनातनी त्योहारों की भांति इस त्यौहार का जुड़ाव भी सीधे प्रकृति से है। हमारे यहां ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर  के बाद बसंत ऋतु का आगमन होता है। बसंत पंचमी प्रति वर्ष  माघ महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनायी जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, बसंत पंचमी का पर्व विद्या की अधिष्ठात्री देवी माता सरस्वती के पूजनोत्सव का पर्व होता है।

साथ ही कई अन्य पौराणिक किंवदंतियों से भी जुड़ा है। मान्यता है कि बसंत पंचमी मां सरस्वती का जन्मदिन है। इसी कारण इस दिन सरस्वती की पूजा की जाती हैं । सरस्वती को ज्ञानदा, पारायणी, भारती ,भगवती ,बागेश्वरी ,विद्या देवी ,विमला, हंस गामिनी, शारदा, वादिनी , वाग्देवी ,संगीत की देवी, ब्राह्मणी, गायत्री, दुर्गा, शक्ति, बुद्धिदात्री, सिद्धिदात्री, आदि पराशक्ति, भारती ,हंस वाहिनी, जगदंबा आदि नाम से भी जाना जाता है। मां सरस्वती साहित्य,संगीत, विद्या, बुद्धि,  ज्ञान, कला की प्रदाता देवी हैं । संसार की समस्त विधाओं और कलाओं की जननी हैं। सिर पर मुकुट के साथ हंस पर विराजमान देवी सरस्वती के चार हाथ हैं। एक हाथ में वीणा, दूसरा हाथ वर मुद्रा में, तीसरे हाथ में पुस्तक और चौथे हाथ में माला रहती है। सरस्वती को श्वेत हंस वाहिनी, श्वेत पद्मासना, वीणा वादिनी और मयूर वाहिनी भी कहा गया है। माना जाता है कि पहले सरस्वती एक नदी के रूप में मौजूद थीं जो बाद में लुप्त हो गई।

     बसंत पंचमी का पर्व पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर भारत, बांग्लादेश, नेपाल सहित कई राष्ट्रों में श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है।      प्रकृति में बसंत ऋतु का मौसम सबसे सुंदर मौसम होता है। इस मौसम में जहां सर्दी समाप्त की ओर अग्रसर होती है तो वहीं गर्मी की दस्तक होने लगती है। कुल मिलाकर मौसम में गुलाबी ठंड का एहसास होता है। प्रकृति में इस मौसम में मादकता बढ़ने लगती है। पेड़ पौधों के पुराने पत्ते झड़ने लगते हैं और नई कोपलें और नई पत्तियां, फूल आने लगते हैं। फूलों पर बहार आ जाती है। खेतों में पीली सरसों सोने से चमकने लगती है। भंवरे फूलों पर मंडराने लगते हैं। आम पर बौर आना शुरू हो जाता है। प्रकृति मदमस्त होने लगती है और समस्त वातावरण बसंत के रंग में रंग जाता है। इस दिन कामदेव और रति की पूजा भी की जाती है और इसे मधुमास भी कहते हैं। इस मौसम में सुख का प्रभाव काम कारक रहता है। ऋतु परिवर्तन के कारण बसंत को ऋतुओं का राजा भी कहा जाता हैं। बसंत के आने पर पंचतत्व जल ,वायु ,धरती, आकाश, अग्नि मादक रूप में आ जाते हैं l बसंत पंचमी के दिन पीले वस्त्र धारण कर सरस्वती की पूजा कर पीले रंग की बर्फी, बेसन, लड्डू प्रसाद बांटा जाता है।

     बसंत पंचमी के दिन को अनेक धार्मिक एवं ऐतिहासिक संदर्भों से भी जोड़ा जाता है। त्रेता युग में इसी दिन भगवान राम दण्डकारण्य वन क्षेत्र में मां शबरी के आश्रम में आए थे। एक मान्यता है कि पृथ्वीराज चौहान ने अफगानिस्तान में इसी दिन शब्द बेधी वाण से मोहम्मद गौरी का वध किया था। पृथ्वीराज चौहान ने अपने कवि चंद्रवरदाई के द्वारा एक  चौपाई बोलने पर मुहम्मद गौरी को शब्द बेधी वाण से मारकर खत्म किया और उसके बाद पृथ्वीराज चौहान और चंद्रवरदाई ने एक दूसरे के पेट में छुरा भोंककर अपनी इहलीला समाप्त कर ली। वहीं बसंत पंचमी को गुरु गोविंद सिंह के विवाह का दिन भी माना जाता है। बसंत पंचमी को ही राजा भोज और महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म हुआ था। 

      ऋग्वेद में सरस्वती को परम चेतना कहा गया है। पुराणों के अनुसार श्री कृष्ण ने सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें एक वरदान दिया था कि बसंत पंचमी के दिन तुम्हारी पूजा की जाएगी। उसके बाद से ही बसंत पंचमी का उत्सव सरस्वती पूजनोत्सव के रूप में शैक्षणिक संस्थानों में सरस्वती की प्रतिमा स्थापना कर हर्षोल्लास से मनाया जाता है। मथुरा में दुर्वासा ऋषि के मंदिर पर बसंत पंचमी का मेला लगता है। वृंदावन के बांके बिहारी जी मंदिर में बसंती कक्ष खुलता है ।शाह जी के मंदिर का बसंती कमरा प्रसिद्ध है जिसके दर्शन को भारी भीड़ आती है। मंदिरों में बसंती भोग और प्रसाद बांटे जाते हैं। बसंत पंचमी से ही होली का उत्सव शुरू हो जाता है। भारतीय संस्कृति का प्रकृति से जुड़ा हुआ बसंत पंचमी का य़ह त्यौहार मौसम में परिवर्तन और मानव जीवन में उमंग और उल्लास लेकर आता है और मनुष्य को आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। 

कवि पराग के शब्दों मे-

 *फूलों पर यौवन आया है, प्रकृति ने ली अंगड़ाई है।* 

 *भंवरे कलियों का रसपान करें, ऋतु बसंत की आई है ll* 

        इस वर्ष  बसंत पंचमी का शुभारम्भ 02 फरवरी को सुबह नौ बजकर 15 मिनट से होगा और समापन 03 फरवरी को प्रातः 06 बजकर 53 मिनट पर होगा। 

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