काव्य गोष्ठी में साहित्यकारों ने बिखेरी छटा

गाज़ीपुर। वैश्विक हिंदी महासभा, उपनिषद मिशन और अखिल भारतीय हिंदी परिषद के संयुक्त तत्वावधान में डॉ मुनींद्र देवेंद्र सिंह के आवास पर हिंदी विमर्श और काव्य गोष्ठी सम्पन्न हुई। 

        संयोजक माधव कृष्ण ने कहा कि “चिकित्सकीय कर्म के कारण डॉ एम डी सिंह प्रायः साहित्य सम्मेलनों में अनुपस्थित रहते हैं लेकिन उनकी रचना प्रक्रिया वर्षों से निर्बाध रूप से सक्रिय है। उनके काव्यजगत में भाव साम्य के साथ भाव वैषम्य भी है, उनके पास उत्सवधर्मी कवितायें हैं तो आम-जन की “मुट्ठी भर भूख” के कारण ”खुन्नस” से भरी कवितायें भी”।

सभा ने उनके एकल काव्यपाठ का रसास्वादन किया। डॉ सिंह के गंभीर स्वर में अनेक कविताओं ने अर्थवत्ता पायी, जैसे, “जीवन का हाल-चाल लिख रहा हूं पाती में/ तेल समय का  जल रहा दीप-दीप बाती में/ तू डरा रहा है किस आग से बता तो बन्धु/ दावानल जल रहा जब धू-धू  कर छाती में.” “पुरुष का पुरुष होना/ स्त्री का स्त्री दिखना भी वैसे ही/ जीना भी उसी तरह। “होती नहीं यार कभी फेल जिंदगी/ है हार जीत की नियत खेल जिंदगी/ चढ़ते-उतरते भीड़ हम मंजिलों के / दौड़ रही पटरियों पर रेल जिंदगी/ छोड़ना न चाहे कोई स्वप्न में भी/ ऐसी है खूबसूरत जेल जिंदगी.”

    सभा के अध्यक्ष वैश्विक हिन्दी महासभा के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ०विजयानन्द ने कहा कि, “डॉ  सिंह जैसे अनासक्त रचनाकारों के कारण हिन्दी का संसार समृद्ध है। अपने ही देश में हिन्दी उपेक्षिता है, लोग डॉ मुनीन्द्र देवेन्द्र सिंह के स्थान पर डॉ एम डी सिंह कहना सामान्य रूप से स्वीकार कर चुके हैं। इस अवस्था को बदलने की जरूरत है।सभा का प्रारम्भ वरिष्ठ कवयित्री रश्मि शाक्या ने किया, और सभा को ऊंचाई प्रदान की. उनके मधुर कंठ से निःसृत इस मुक्तक ने सभी का मन मोह लिया, “दिखते हैं  फूलों के जैसे, लेकिन  चिंगारी  होते हैं।/लाएं उतना धैर्य कहाँ से, जितना वे तारी होते हैं।/अगर निभा न हम पाए तो तड़प-तड़प कर मर जायेंगे,/हमसे कोई वचन न मांगो, वचन बड़े भारी होते हैं।” हिन्द प्रकाशन द्वारा सम्मानित कवयित्री पूजा राय ने अपने विशिष्ट अंदाज में काव्य पाठ करते हुए लोगों को सोचने पर विवश किया, “प्रेम में भटका हुआ/ प्रेम में ही दम तोड़ता है आखिर/ मृत्यु को ढूंढते मृत्यु नहीं आती/ आती है। अचानक बोलकर धप्पा/ कौन पहुंच पाता है खुद तक/ कौन इस यात्रा के अंत का फल भोगता है/ खुद की यात्रा में कितनी बार मैं खुद तक पहुंच सकी/ यात्रा की भी या नहीं.” 

      युवा रचनाकार मृत्युंजय राय ने अपने मुक्तक और बाल कविता से लोगों को छूने का प्रयास किया और वाहवाही बटोरी। प्रोफेसर संतोष सिंह ने नवगीतकार डॉ०शम्भूनाथ सिंह  के इस गीत का सस्वर पाठ किया। “समय की शिला पर मधुर लेख कितने किसी ने बनाये, किसी ने मिटाए.” अध्यापक कवि आशुतोष श्रीवास्तव ने व्यंग्यात्मक कविता पढ़ी, “इस माइक मंच और माला ने क्या क्या न करा डाला/ कभी खुद को श्री, श्रीमान लिखा, कभी खुद को लिखा वरिष्ठ/खुद से पहनी माला, और बन गये अतिथि विशिष्ट ”। डॉ०निरंजन यादव ने बुद्ध को समय की आवश्यकता बताते हुए एक कविता पढ़ी. डॉ० बालेश्वर विक्रम ने सुहासिनी टाकीज के पास स्थित आहाते का मानवीकरण करते हुए एक रोचक दार्शनिक कविता पढ़ी। डॉ०कृष्णानंद दुबे गोपाल ने अपनी कुंडलियों से सबका मन मोह लिया।

        प्रकाशक अजय आनन्द ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि, प्रकाशक और साहित्यकार घर के हो सकते हैं, लेकिन उनका स्तर स्थानीय हो यह आवश्यक नहीं, प्रायः हम बाहरी लोगों के चक्कर में घर की प्रतिभाओं को उनका देय देना भूल जाते हैं। डॉ०एम डी सिंह इस सम्मान के पात्र हैं। डॉ श्रीकांत पाण्डेय ने सभा के समापन की घोषणा करते हुए कहा कि, ऐसे आयोजनों से शहर की सांस्कृतिक और साहित्यिक चेतना गतिशील होती है। सभा में मनोज गुप्ता, अजय शंकर लाल, अनुपम आनन्द, स्मृति इत्यादि अनेक वरिष्ठ साहित्य के सुधीजन और गणमान्य लोग उपस्थित रहे। स्वागताध्यक्ष डॉ०मुनींद्र देवेंद्र सिंह,संयोजन जिला अध्यक्ष माधवकृष्ण द्वारा हुआ।

Visits: 28

Leave a Reply