अकेलापन – कवि हौशिला प्रसाद अन्वेषी

हम
अकेले हैं
वे भी अकेले हैं
जो अकेले नहीं है
इस भीड़ में
फिर भी
अकेले हैं
सब कुछ के बावजूद
तमाम भौतिकताओं के होते हुए भी
वे अकेले हैं
अपने अकेलेपन के साथ ।
और खरोंच रहे हैं
अपनी सामाजिकता
अपना अंतर्विरोध
अकेले रहकर।
दिनारंभ के साथ
उनका व्यक्तिवाद
लड़ने लगता है
उनके ही
अकेलेपन से
व्यथित होकर
और वे
हो जाते हैं बीमार
बुरी तरह
अपने ही
अकेलेपन में
विवश होकर।

अन्वेषी

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