स्वस्थ जीवन के लिए पर्यावरण सुरक्षा आवश्यक 

विश्व पर्यावरण दिवस – एक कदम जागरूकता की ओ

           *डा ए के राय* 

गाजीपुर। आदि काल से प्रकृति जीवन का अभिन्न अंग रहा है। प्रकृति ने जीवन को सरल बनाने के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान किया जिससे प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जीवन चलता रहा। जीवन के लिए पांच मूलभूत तत्वों की आवश्यकता होती है जिसके अभाव में जीवन व्यतीत करना कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव सा लगता है। वे पांच मूलभूत तत्व पृथ्वी,जल, अग्नि, आकाश और वायु हैं। इनसे ही पर्यावरण बनता है। 

     जीवन के लिए इनकी उपयोगिता पर रामचरितमानस के रचयिता तुलसीदास ने किष्किंधा कांड में चौपाई में लिखा है “छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा”

      आज विश्व के तमाम देश प्रकृति की बिगड़ती हुई आबोहवा और पर्यावरण को लेकर काफी चिंतित है क्योंकि जो पर्यावरण मानव जीवन के लिए नितांत आवश्यक है उसमें आए दिन बदलाव होता जा रहा है। मानव की बदलती जीवन शैली ने प्राकृतिक पर्यावरण को काफी प्रभावित किया है जिससे प्रकृति में असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो गई है‌। जीवन को सुचारु ढंग से संचालन हेतु पर्यावरण संवर्धन व विकास की नितांत आवश्यकता है। हरे भरे वनों से आच्छादित और श्रृंगारित वसुंधरा, पक्षियों के कलरव, कल -कल करती नदियों तथा विभिन्न प्रजातियों के जीव जंतुओं को अपनी असीम ऊर्जा से संरक्षित करती रही है। ऋषियों के गुरुकुल तथा आश्रम उस समय प्राकृतिक वातावरण से भरपूर, कोलाहल से दूर बनों में हुआ करते थे। युग परिवर्तन के साथ जैसे-जैसे मानव का विकास होता गया वैसे-वैसे विकास के नाम पर मानव ने आधारभूत व्यवस्था में परिवर्तन करना शुरु कर दिया। आरंभ में पूरी तरह से प्रकृति पर निर्भर रहने वाला मानव तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या की जरुरतों को पूरा करने तथा अपने भौतिक सुख साधनयुक्त जीवन पद्धति व आधुनिकता की चाह में मानव ने प्रकृति से खिलवाड़ शुरु कर दिया।

        अपने को सभ्य बनाने के फेर में मानव ने वन विनाश, खनिज दोहन, भूमिगत जल दोहन, अनावश्यक उर्जा उपयोग कर वायुमंडल को अशुद्ध कर दिया तथा प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर प्रकृति को अपने ढंग से परिवर्तित किया जिससे वैश्विक तापन, पर्यावरण प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, भूमि प्रदूषण,ओजोन परत क्षरण जैसी अनेकों समस्याएं आज मानव के समक्ष सुरसा की भांति मुंह बाये खड़ी हैं, जिससे आज समस्त मानव जाति के समक्ष बढ़ते पर्यावरणीय ताप के कारण जीवन का संकट उत्पन्न होता जा रहा है।

         पर्यावरण प्रदूषण की बढ़ती समस्या से चिन्तित संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 1972 में स्टॉकहोम (स्वीडन) में विश्व भर के देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया। इसमें 119 देशों ने भाग लिया और पहली बार एक ही पृथ्वी का सिद्धांत मान्य किया। इसी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का जन्म हुआ तथा प्रति वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस आयोजित करके नागरिकों को प्रदूषण की समस्या से अवगत कराने का निश्चय किया गया। पर्यावरण दिवस का मुख्य उद्देश्य लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाते हुए उनमें प्राकृतिक संरक्षण हेतु प्रेरित करना है ताकि आनेवाली पीढ़ी को भी प्राकृतिक सम्पदा का लाभ मिल सके।

      पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 19 नवंबर 1986 से लागू हुआ। सन 1972 अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण सोच का महत्त्वपूर्ण वर्ष था। उस वर्ष 5 जून से 16 जून तक संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में पर्यावरणीय सुरक्षा को लेकर पहला बड़ा आयोजन किया गया। इस सम्मेलन को “कांफ्रेंस ऑन ह्यूमन एनवायरनमेंट” या “स्टॉकहोम कांफेरेंसे” के नाम से भी जाना जाता है। उसका लक्ष्य मानव परिवेश को बचाने और बढ़ाने की चुनौती को हल करने के तरीके के बारे में बुनियादी आधार तैयार करना था। फिर उसी वर्ष 15 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा  ने प्रस्ताव पारित कर प्रति वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की घोषणा की। 

       यह वास्तविकता है कि यदि हमारा पर्यावरण सुरक्षित नहीं बचेगा तो हम भी नहीं बचेंगे। इसलिए पर्यावरण सुरक्षा मानव जीवन बचाने की दिशा में एक ज़रूरी कदम है। विश्व पर्यावरण दिवस हर वर्ष किसी न किसी थीम को लेकर मनाया जाता है और इस वर्ष की थीम “प्लास्टिक प्रदूषण” है। आज रोजमर्रा के कार्यों में प्लास्टिक का प्रयोग बढ़ा है। प्लास्टिक हर रुप में जीवन के लिए हानिकारक है। अतः इसके प्रयोग पर रोक लगाने हेतु लोगों को स्वयं आगे आना होगा। मनुष्यों के मनमानी से प्रदुषित वातावरण से त्रस्त अनेकों जीव-जंतुओं के विलुप्त होने की दर अनुमान से कहीं अधिक है। वैज्ञानिक कहते हैं कि 20,000 से अधिक जीव-जंतु हमेशा के लिए विलुप्त होने की कगार पर हैं। आज गौरैया, गिद्ध जैसे अनेकों जीव मोबाइल टावर के रेडिएशन, इंसेक्टिसाइड, पेस्टिसाइड के इस्तेमाल, अंधाधुंध शिकार, वायु प्रदुषण और ऐसी ही अन्य चीजों से समाप्त के कगार पर हैं। इतना ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में लगभग 55 लाख लोग प्रति वर्ष दूषित हवा के कारण मौत के मुंह में जा रहे हैं, जो कुल मौतों का लगभग 10 प्रतिशत है। अकेले हमारे देश में 12 लाख लोग प्रति वर्ष ज़हरीली हवा के कारण मर रहे हैं। आज भारत के अनेकों शहर दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में शामिल हैं।

आज भीषण गर्मी समस्त देश में कहर बरपा रही है। मैदानी इलाकों के साथ साथ पहाड़ी इलाकों में भी तापमान में अप्रत्याशित वृद्धि, लू और गर्मी की प्रचण्डता का आलम यह है कि हिमाचल, उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्यों में मौसम विभाग द्वारा येलो अलर्ट ,तो वहीं हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान व महाराष्ट्र राज्यों में रेड अलर्ट जारी कर लोगों को धूप से बचने और गर्मी में बाहर न निकलने की सलाह दी गई है। बढ़ते वातावरणीय तापमान निस्संदेह प्रकृति के बिगड़ते मिजाज और बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के भयावह दुष्परिणाम हैं । वायु प्रदूषण के चलते प्रतिवर्ष लाखों लोग मौत के मुंह में समा रहे हैं। कार्बन उत्सर्जन के मामले में दिल्ली दुनिया के 30 शीर्ष प्रदुषित शहरों में पहुंच चुका है। एसी,फ्रिज से उत्सर्जित व कुड़े से निकलती जहरीली गैस, औद्योगिक इकाइयों से निकलते धुएं, सड़कों पर वाहनों की बढ़ती संख्या से कार्बन उत्सर्जन से निकली प्रदूषित वायु मानव शरीर के फेफड़ों के अतिरिक्त त्वचा और आंखों को भी भयंकर रूप से नुकसान पहुंचा रही है। इसके साथ ही आज विभिन्न स्रोतों द्वारा बेहिसाब पानी की बर्बादी के चलते भूमिगत जल का स्तर तेजी से गिर रहा है। कुछ इलाकों में गर्मी के मौसम में भूजल स्तर इतना नीचे चला जाता है कि पानी के लिए वाटर-टैंक्स पर निर्भर होना पड़ रहा है। आज हम पर्यावरण में इतनी अधिक कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ रहे हैं कि समुद्र तक का पानी अम्लीय होता जा रहा है, हमने घर बनाने के लिए इतने जंगल काट दिए हैं कि आज वायुमंडल खतरे में पड़ गया है। इतना ही नहीं बल्कि रासायनिक उर्वरकों के मनमाने प्रयोग ने खेतों को इतना ज़हरीला बना दिया है कि उनमे उगने वाली सब्जियां व अन्न भी हानिकारक हो रहे हैं।ठीक ऐसा ही प्लास्टिक प्रयोग से भी हो रहा है। इनके प्रयोग से मानव के किडनी, लीवर तथा हृदय रोगों में लगातार वृद्धि हो रही है। वायुमंडल में बढ़ रही हानिकारक गैसों से भूमंडलीय गर्मी महसूस होने लगी है। करोड़ों सालों से जमे ग्लेशियर जितनी तेजी से पिघल रहे हैं उतनी तेजी से कभी नही पिघले थे। इतने पर भी यदि हम पर्यावरण संरक्षण हेतु सचेष्ट नहीं हुए तो शायद बाद में हमें इसका मौका भी ना मिले और आगे आने वाली पीढियां हमे इस भयंकर गलती के लिए कभी माफ़ न करें।

    पर्यावरण संरक्षण के लिए आवश्यक है कि हम प्लास्टिक के प्रयोग से बचें और जल, जमीन तथा वायु को प्रदुषण से बचाव हेतु समर्पित रहें।

  अपने जीवन के विशेष दिवसों को यादगार बनाने हेतु प्रकृति संरक्षण के लिए पौधारोपण  कर समाज में चेतना पैदा करें। इसके लिए  सड़कों के किनारे व सार्वजनिक स्थानों पर पीपल,बरगद, नीम के पौधों का रोपण करना चाहिए, क्योंकि पीपल वृक्ष कार्बन डाई ऑक्साइड का 100 फिसदी अवशोषक है तो बरगद 80 फिसदी और नीम 75 फिसदी अवशोषक है।

       पर्यावरण दिवस को सार्थक बनाने हेतु हमें प्लास्टिक का पूर्ण रुप से वहिष्कार करते हुए पानी का अनावश्यक दुरुपयोग रोकने, किसानों को खेती में रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर जैविक खाद के उपयोग हेतु प्रेरित करने और पौधारोपण कर बसुंधरा को हरा भरा बनाने में सहयोग करना होगा तभी पर्यावरण सुरक्षित रह सकेगा।

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