पत्रकारिता – न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर

पत्रकारों पर दर्ज रंगदारी के मुकदमें कहीं षड्यंत्र तो नहीं? लखनऊ। पत्रकारों पर आये दिन हो रहे फर्जी मुकदमों पर चिंता व्यक्त करते हुए जर्नलिस्ट काउंसिल आफ इंडिया ने एक वर्चुअल बैठक आयोजित की। इस पर चिंता व्यक्त करते हुए बैठक में सम्मिलित वरिष्ठ पत्रकारों ने एक स्वर से इसके विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद की। उन्होंने कहा कि पत्रकारों पर किसी प्रकार के मुकदमें दर्ज करने से पूर्व उस मामले की निष्पक्ष जांच अति आवश्यक है। जांच में यदि पत्रकार दोषी पाया जाता है तो उसके विरुद्ध कार्यवाही भी होनी चाहिए। जर्नलिस्ट काउंसिल ऑफ इंडिया संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुराग सक्सेना ने वर्चुअल मीटिंग के दौरान कहा कि पत्रकारों पर फर्जी रंगदारी के मुकदमों को दर्ज होने से पूर्व प्रकरण की निष्पक्ष जांच नितांत आवश्यक है। लगातार देखने मे आ रहा है कि पत्रकारों पर रंगदारी के मुकदमे दर्ज हो रहे है।किसी भी समाचार को प्रकाशित करने से पूर्व दूसरा पक्ष लेना भी पत्रकारिता में आवश्यक है वर्ना एकपक्षीय समाचार को दिखाने पर समाचार की विश्वसनीयता पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाता है। वहीं दूसरा पक्ष लेने पर पत्रकार पर आसानी से रंगदारी मांगने का आरोप लगाए जाते है। ऐसे मे आवश्यक है कि प्रकरण की पहले निष्पक्ष जांच हो और जांच के आधार पर ही आगे की कार्यवाही हो। उन्होने कहा इस संदर्भ मे संगठन द्वारा जल्द ही एक ज्ञापन, केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री को प्रेषित किया जायेगा। उन्होंने कहा कि अभी तक ऐसा कोई कानून नहीं है जिससे पत्रकारों को सरंक्षण मिल सके ऐसे मे गैर मान्यता प्राप्त पत्रकार पर आरोप लगते ही वह तुरंत तथाकथित व फर्जी पत्रकार हो जाता है।
इस विषय पर आसाम हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस विकास कुमार का कहना है कि आज तक जितने भी मुकदमें पत्रकारों पर हुए हैं, उनमें से किसी का भी दोष सिद्ध नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि पत्रकारों पर फर्जी मुकदमें दर्ज हो रहे हैं। पूर्व जस्टिस का कहना है कि यह पत्रकारों को बदनाम करने की साजिश ही लगती है। वरिष्ठ पत्रकार डा. आर सी श्रीवास्तव ने कहा कि लोकतंत्र में पत्रकारिता की अनिवार्यता इस संबंध में और बढ़ जाती है कि यदि लोकतंत्र के तीनों स्तंभों द्वारा जाने अनजाने ऐसे कार्य किए जायें जिसमें आमजन को दिक्कत या असुरक्षा पैदा हो, तो ऐसी स्थिति में उसे उजागर किया जाए ताकि हर व्यक्ति अपने को सुरक्षित महसूस कर सकें। परंतु इस बीच परिभाषाएं बदल गई हैं और पत्रकारों पर रंगदारी के जो भी मुकदमें दर्ज हो रहे हैं उसमें अधिकतर फर्जी और पत्रकारों को प्रताड़ित करने के उद्देश्य से किए जा रहे हैं। अतः हम पत्रकारों पर मुकदमों को दर्ज होने से पूर्व प्रकरण की निष्पक्ष जांच किसी राजपत्रित या सक्षम अधिकारी से करवाने के उपरांत ही मुकदमा दर्ज कराने की मांग करते हैं ताकि पत्रकारों के खिलाफ फर्जी मुकदमे न दर्ज हों, और वह अपना काम बिना किसी दबाव के ईमानदारी से कर सकें।
झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार झा ने कहा कि आज के समय में पत्रकारिता करना अपने आप में एक बहुत बड़ी चुनौती साबित हो रही है। एक तरफ जहां सच को लिखना और दिखाना एक पत्रकार का नैतिक कर्तव्य है, वहीं सच को दबाने के लिए पत्रकारों पर हर तरफ से दबाव बनाया जाता है। वहीं हमारी पीड़ा को सुनने वाला कोई नहीं है। ऐसे में शासन द्वारा पत्रकारों के ऊपर देश भर में हो रहे फर्जी मुकदमें को रोकने के लिए कारगर कानून बनने के साथ साथ पत्रकारों की पूर्ण सुरक्षा की समुचित व्यवस्था करने की जरूरत है जिसपर शासन की उदासीनता लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है।
वरिष्ठ पत्रकार राजू चारण ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे बुद्धिजीवी समाज में पत्रकारिता का महत्व काफी बढ़ गया है। नई मीडिया जगत में छोटे क्षेत्रीय अखबारों व पोर्टल चैनल बालों ने योग्यता के आधार को समाप्त कर दिया है। अब ऐसे लोग भी पत्रकार बन गये हैं जिनका पत्रकारिता से दूर दूर तक भी कोई लेना देना नहीं है। सिर्फ उन्हें थोड़े से पैसों के लालच में माईक आईडी और आई कार्ड थमा देते है वह अपनी कमाई के चक्कर में लोगों को ब्लैक मेल करते हैं। इस वजह अब लोगों का भरोसा पत्रकारों पर से उठने लगा है अब आये दिन देश में छपने वाले अखबारों में खबरें छपती है कि फला पत्रकार किसी को ब्लैकमेल कर रहा था और फलां थाने में उसके खिलाफ मामला दर्ज हुआ है। ऐसे ही लोग जनता में सच्चे पत्रकारों की छवि को धूमिल कर रहे हैं। इनकी जांच करना नितांत आवश्यकता है।
वरिष्ठ पत्रकार संजय जैन ने कहा कि कहीं यह लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को धराशायी करने का षड्यंत्र तो नहीं है? आज देश में रंगदारी से संदर्भित सबसे ज्यादा दंश पत्रकारों को ही क्यों झेलना पड़ रहा है आज अचानक ऐसा क्या हुआ कि आज पत्रकार लोकतंत्र में उपहास के पात्र बन रहे रहे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार डा. ए के राय का कहा कि पत्रकारों को आए दिन भ्रष्टाचारियों, गुंडा मवालियों से दो-चार होना पड़ता है। जैसे-जैसे समाज में भ्रष्टाचारिक अपराधिक गतिविधियां बढ़ी हैं, वैसे वैसे पत्रकारों पर आए दिन भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों द्वारा पत्रकारों पर भी मुकदमे बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे असामाजिक तत्व अपने विरुद्ध लिखे गए समाचारों पर बौखला कर, अपने रसूख व पहुंच के बल पर जहां पत्रकार को धमकाने से नहीं चूकते हैं और अपने कुकर्म को छुपाने के लिए उल्टा पत्रकार पर ही गलत आरोप लगाकर उसके विरुद्ध अपराध दर्ज कराते हैं। ऐसे मामलों में शासन प्रशासन को चाहिए कि पत्रकारों से संबंधित किसी भी घटना की अधिकारिक जांच कराएं और दोषी पाए जाने पर ही उनके विरुद्ध अभियोग पंजीकृत कराया जाए ।
हरियाणा से वरिष्ठ पत्रकार लोकेश दत्त मेहता ने भी पत्रकारों पर दर्ज रंगदारी के मुकदमों से पूर्व आधिकारिक जांच की मांग का समर्थन किया।

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