शरद पूर्णिमा – चन्द्रमा से होगी अमृत वर्षा

वाराणसी(उत्तर प्रदेश)।सनातनी हिन्दू संस्कृति में अश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस दिन सोलह कलाओं से परिपूर्ण चन्द्रमा पृथ्वी के सर्वाधिक नजदीक होता है। इस रात को दिखाई देने वाला चंद्रमा अपेक्षाकृत अधिक बड़ा दिखाई देता है। इस दिन चन्द्रमा की शीतल मनमोहक चांदनी धरती पर अपनी विशेष रश्मियों को बिखेरकर रात को मनभावन बना देती हैं।प
मान्यता है कि इसी रात को श्रीकृष्ण ने गोपियों संग महारास रचाया था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा को व्रत रख कर विधि-विधान से लक्ष्मीनारायण का पूजन करना चाहिए। श्री लक्ष्मी जी का श्रृंगार किया जाता है। उन्हें वस्त्र, पुष्प, धूप दीप, गंध, अक्षत, तांबूल,सुपारी, मेवा, फल और मिष्ठान तथा दूध से बनी खीर जिसमें दूध, चावल, मिश्री, मेवा,शुद्ध देशी घी मिश्रित हो,का नैवेद्य भी लगाया जाता है। लक्ष्मी जी के सामने शुद्ध देसी घी का दीपक जलाएं और लक्ष्मी जी की आराधना करें। श्री लक्ष्मी जी का प्रिय मंत्र “ॐ श्रीं नमः” है इसका यथासंभव जाप करें।
इसके उपरान्त रात में गौ दुग्ध, चावल, मिश्री, पंचमेवा, शुद्ध देशी घी से बनी खीर को चांद की रोशनी में हल्के महीन कपड़े से ढक कर रात भर खुले आसमान के नीचे रखने की परम्परा है। इससे उस पर चंद्रमा की शीतल किरणें रात भर पढ़ती रहती हैं। दूसरे दिन सुबह स्नान करके खीर का भोग अपने घर के मंदिर में लगाकर उसी खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। माना जाता है कि इस प्रसाद को ग्रहण करने से अनेक प्रकार के रोगों से छुटकारा मिलता है।
कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात चन्द्रमा से अमृतवर्षा होती है क्योंकि उस रात चांद धरती के सबसे करीब होता है। माना जाता है कि शरद पूर्णिमा को चांद 16 कलाओं से संपन्न होकर अमृत वर्षा करता है जो हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार यह दो ऋतुओं का संगम होता है और यहीं से मौसम में बदलाव शुरु होता है। यहीं से वर्षा ऋतु के स्थान पर शीत ऋतु का आगमन होता है। शरद पूर्णिमा के अवसर पर रात में खीर का खाना यह दर्शाता है कि अब हमें अपने आहार में गर्म पदार्थों का सेवन करना चाहिए।शारीरिक आन्तरिक शक्ति को संतुलित करने के लिए शीत ऋतु में गर्म पदार्थ शरीर के लिए हितकर होता है।
इस वर्ष शरद पूर्णिमा आज 08 अक्टूबर को अर्धरात्रि के पश्चात 03 बज कर 43 मिनट से आरम्भ होगी और 09 अक्टूबर रविवार को अर्धरात्रि के पश्चात 02 बज कर 25 मिनट तक रहेगी। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र 08 अक्टूबर शनिवार को संध्या 5:08 से आरंभ होकर 9 अक्टूबर रविवार को संध्या 4:21 तक रहेगा इसके उपरांत रेवती नक्षत्र प्रारंभ हो जाएगा पूर्णिमा तिथि का मान 09 अक्टूबर रविवार को होने के फलस्वरूप स्नान दान व्रत धार्मिक अनुष्ठान इसी दिन संपन्न होंगे।

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