कवि अशोक राय वत्स की नयी रचना

सूरज निस्तेज नहीं होता”

को आंख दिखाने से सूरज निस्तेज नहीं होता।

एक काफिर के कह देने से हिन्दू आतंकी नहीं होता।।

निज घर न सम्हलते हैं जिनसे आरोप लगाते रहते हैं।

अपने दुष्कर्म छुपाने को दूजों को कोसते रहते हैं।।

अपनी गाथा गा लेने से रावण बड़ा नहीं होता।

एक काफिर के कह देने से हिन्दू आतंकी नहीं होता।।

अपनी कमियों को छुपा छुपा जो दोष निकाला करते हैं।

वे लोग सदा अपने घर में भी डर डर के रहते हैं।।

झूठा इतिहास पढ़ाने से आक्रांता योद्धा नहीं होता।

एक काफिर के कह देने से हिन्दू आतंकी नहीं होता।।

जिस हिन्दू में हिन्दुत्व नहीं उसका कोई व्यक्तित्व नहीं।

जो मर्यादाएं न माने उसका कोई अस्तित्व नहीं।।

सपने में भी सिंह कभी गीदड़ से विचलित नहीं होता।

एक काफिर के कह देने से हिन्दू आतंकी नहीं होता।।

कायर कपटी और कुल द्रोही दुश्मन के गुण गाते हैं।

हम लाख कराएं दुग्ध पान विषधर न विष तज पाते हैं।।

जयचंदो के बल पर कभी भारत आजाद नहीं होता।

एक काफिर के कह देने से हिन्दू आतंकी नहीं होता।

कवि, अशोक राय वत्स ©® स्वरचित
रैनी, मऊ, उत्तरप्रदेश 8619668341

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