महावीर चक्र विजेता की 50वीं शहादत दिवस 23 नवम्बर को, प्रशासनिक उपेक्षा से लोग मायुस

गाजीपुर। जखनियां तहसील क्षेत्रांतर्गत एमाबंशी गांव निवासी शहीद महावीर चक्र विजेता रामउग्रह पांडेय की 50वीं शहादत दिवस 23 नवंबर को मनाई जाती है। राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले अमर सपूत की, प्रशासनिक उपेक्षा व अनदेखी से शहीद के परिजन व ग्रामवासी ही नहीं बल्कि समूचे क्षेत्रवासी अवाक हैं।
   बताते चलें कि वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में रामउग्रह पांडेय ने अदम्य वीरता और साहस का परिचय देते हुए दुश्मनों के छक्के छुड़ाया और अदम्य साहस और वीरता का परिचय देते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे। शहीद राम उग्रह पांडेय को तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरी गिरी ने सेना के द्वितीय सर्वोच्च सम्मान महावीर चक्र से सम्मानित किया था।

इस वर्ष उनकी शहादत का 50वां वर्ष होना अपने आप में गौरवशाली है। देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले लांस नायक महावीर चक्र विजेता शहीद रामउग्रह पांडेय की 50वीं शहादत दिवस को लेकर क्षेत्रवासियों में काफी उत्साह है।
 इसके बावजूद सरकार द्वारा इस कार्यक्रम के प्रति उदासीन रहना समझ से परे है। लोगों का कहना है कि सरकार अमृत महोत्सव के नाम पर शहीदों को नमन करने के लिए बड़े आयोजन कर रही है, ऐसे में 50वें शहादत दिवस पर यहां भी बड़े प्रशासनिक कार्यक्रम होंगे, लेकिन स्थानीय प्रशासन के साथ ही किसी भी तरह की कोई तैयारी ना होने से क्षेत्रवासी अवाक नजर आने लगे हैं।
      इस संबंध में शहीद सम्मान सेवा समिति के अध्यक्ष श्रीराम जायसवाल ने कहाकि एक तरफ तो केंद्र सरकार द्वारा क्रांतिकारियों युद्धवीर और शहीदों को श्रद्धांजलि व नमन करने के लिए अमृत महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। वहीं सेना के दूसरे सर्वोच्च सम्मान महावीर चक्र से सम्मानित शहीद के लिए स्थानीय प्रशासन के पास समय तक नहीं है। उन्होंने बताया कि पिछले हफ्ते संगठन सचिव अनिल पांडेय द्वारा जिलाधिकारी से मुलाकात कर कार्यक्रम के बाबत पत्रक दिया गया, जिसके संबंध में महज आश्वासन ही प्राप्त हो सका। कार्यक्रम के दो दिन पहले तक प्रशासन की तरफ से कोई प्रतिनिधि तो दूर कोई सफाई कर्मी भी नहीं पहुंचा है।
    प्रशासनिक उपेक्षा से मर्माहत शहीद के परिजन अब स्थानीय छात्र-छात्राओं की मदद से बदहाल पार्क की सफाई में जूटे हुए हैं। शहीद रामउग्रह पांडेय की नेत्रहीन पुत्री सुनीता पांडेय ने कहाकि पिता की शहादत के लगभग 40 वर्षों तक हम लोग झोपड़ी में रहने को मजबूर हुए हालांकि इसके बाद सिद्धपीठ हथियाराम मठ पीठाधीश्वर स्वामी श्री भवानीनंदन यति जी महाराज व स्थानीय पत्रकार समाजसेवियों की मदद से कुछ पुरसाहाल हो सका। लेकिन शहीद के 50 में शहादत दिवस समारोह पर प्रशासनिक उपेक्षा चर्चा का विषय बना हुआ है।

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