कविता – सोच रहा हूं अब क्या गाऊँ

सोच रहा हूं अब क्या गाऊँ ।
हाले दिल मैं किसे सुनाऊं ।।
चारों तरफ अंधेरा पसरा ।
कैसे नई रोशनी लाऊँ ।।

जंगल जंगल राज चला है।
किस जंगल की बात चलाऊं ।।
जो गाया सब गड़बड़ गाया ।
सीधी राह कहां से लाऊं ।।

रोज गुलामी मार रही है ।
टूटे मन को क्या समझाऊं।।
कई बार मन में आता है ।
सब लोगों को साथ बुलाऊँ।।

कह दूं यह सच्चाई ले लो ।
और उन्हीं से बात चलाऊँ ।।
शायद निकले राह मुकम्मल।
जिस पर चलकर देश बनाऊँ ।।

पहले अपने भीतर जाऊं ।
और गुलामी से लड़ जाऊं।।
जीत मिली तो इस धरती पर ।
भारत मां का गाना गा ऊँ ।।

इसी आश में सोच रहा हूं ।
इंकलाब का बिगुल बजाऊँ ।।
दुख के बादल छँट जाने पर ।
बढ़िया मानव धर्म चलाऊँ ।।

सोच रहा हूं अब क्या गाऊँ ।
हाले दिल मैं किसे सुनाऊं ।। कवि - हौसिला प्रसाद अन्वेषी

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