हँसा जो कभी तो हँसी क्रूर दुनियां@अखिल भारतीय अनागत काव्य-गोष्ठी सम्पन्न

गाजीपुर। अखिल भारतीय अनागत साहित्य संस्थान द्वारा आयोजित ई-काव्य गोष्ठियों की कड़ी में लेह लद्दाख के डा. राहुल मिश्र जी के संयोजकत्व में आयोजित अखिल भारतीय अनागत काव्य-गोष्ठी, भारतीय संस्कृति एवं साहित्य संस्थान, प्रयागराज के राष्ट्रीय अध्यक्ष, गाजीपुर जनपद के मूल निवासी डॉ. विजयानन्द की अध्यक्षता में संपन्न हुई।
     गोष्ठी का आरम्भ डॉ. संध्या त्रिपाठी के माँ सरस्वती कंठ में विराजो.. के माध्यम से वाणी की देवी सरस्वती की वंदना से हुआ।                       
      काव्य-गोष्ठी में हिमांचल प्रदेश के वरिष्ठ कथाकार और कवि त्रिलोक मेहरा ने- क्यों रोता है बंदर / छूट गया है बंदरिया और बच्चों से / देखता है ठूँठ में भड़की आग / गुफा तक चली गई है… के माध्यम से प्रकृति के साथ खिलवाड़ करते मनुष्य की नीयत और इससे आहत होते वन्यजीवों की दयनीय दशा का चित्रण किया। इसी क्रम में पहाड़ी बोली में लोहड़ी का गीत भी त्रिलोक मेहरा ने सुनाया जिसे श्रोताओं-दर्शकों ने इस गीत को बहुत सराहा।
    मार्तण्ड साहित्यिक सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्था, लखनऊ के अध्यक्ष और वरिष्ठ कवि सरस्वती प्रसाद रावत की रचना- शक्ति पुंज नारी हो अबला नहीं हो तुम / सम्मुख शत्रु देखि लक्ष्मीबाई बन जाइये / मौत की सरीखे कोई विपत्ति आ जाये कहीं / ललकारि यमराज को सावित्री बन जाइये, को खूब सराहा गया। इन पंक्तियों के साथ ही उनकी कोरोना पर रचित कविता और जलाओ ज्ञान का दीपक / बनो तुम अत्त दीपो भव / यही हो लक्ष्य जीवन का.. गीत ने खूब वाहवाही लूटी।
     लखनऊ से जुड़ी कवयित्री डॉ. संध्या त्रिपाठी ने कोरोना की आपदा से त्रस्त लोगों की वेदना को व्यक्त करते स्वरचित अवधी गीत- कोरोना भैया अब मान जाओ / ज्यादा न सबको सताओ.. का सस्वर पाठ किया। उनके इस गीत को खूब सराहा गया।
       अनागत कविता आंदोलन के प्रवर्तक और अखिल भारतीय अनागत साहित्य संस्थान के संयोजक डॉ. अजय प्रसून ने अपने गीत- हम न रहेंगे किंतु हमारे गीत यहीं होंगे, / कालजयी हम प्यास लिये अभिनीत यहीं होंगे। / छोड़ यहीं जायेंगे अक्षर अक्षर प्रीति भरे, / कभी हमारा नाम शून्य में समय उछालेगा। / कौन हमारे सपनों को अपनों सा पालेगा.. के माध्यम से अनागत के भावों की अभिव्यक्ति की। कठिन वर्तमान में जीते हुए स्वर्णिम भविष्य की कामना पर केंद्रित अनागत कविता आंदोलन में आज की कठिनाइयों के बीच कल की सुखद कामना की जाती है। डॉ. अजय  प्रसून के गीत-  खींच दो दिशाओं में अनाम हाशिये / रूप के हजार आइने जहर पिये / रोशनी बटोरते कई पहर जिये / नीर और क्षीर की बिगाड़ हो चली.. को दर्शकों ने खूब सराहा।
       काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे प्रयागराज के वरिष्ठ साहित्यकार, कवि और शिक्षाविद् डॉ. विजयानन्द ने अपने अध्यक्षीय काव्यपाठ में अनागत के भावों को समेटते हुए- फूल जो कल हँस रहे थे / आज मुरझाकर गिरे हैं । हँसा जो कभी तो हँसी क्रूर दुनिया / नियति में फँसा तो भगी दूर दुनिया / किसी ढंग से बीतते जा रहे दिन / मुझे घेरती अर्थ की चूर दुनिया.. को खूब सराहा गया। डॉ. विजयानन्द के गीत- आज किसकी बात माने,पक्ष दोनों का प्रबल है / एक अंतर की तपस्या, एक तप का मधुर फल है ।सामने पर कुपथ दोनों, किस तरह ? किसको वरूँ मैं.?.. के माध्यम से वर्तमान की विसंगतियों और समस्याओं के बीच कल के सुखद भविष्य की कामना को रेखांकित किया। 
      काव्य-गोष्ठी के संयोजक और केंद्रीय बौद्ध विद्या संस्थान मानद विश्वविद्यालय के हिंदी प्राध्यापक डॉ. राहुल मिश्र ने- राजपथों पर राजकुमारों जैसे क्यूँ ना चल पाए / वट वृक्षों सी शाखों वाले जीवन में ना ढल पाए / सूखी रोटी चने-चबेने से कुछ ने इतिहास रचा / माल-मलाई खाकर भी कुछ बच्चे ना पल पाए… के माध्यम से वर्तमान को देखते हुए भविष्य की बात कही। अनागत के भाव पर केंद्रित उनके इस गीत को खूब सराहा गया।
       अंतर्जालिक पटल पर संपन्न इस काव्य-गोष्ठी में देश-विदेश के विभिन्न स्थानों से दर्शक और श्रोतागण जुड़े रहे।

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