पंचायत चुनाव -जोर का झटका धीरे से..

नये ढंग से जारी होगी अरक्षण सूची

लखनऊ। उत्तर प्रदेश पंचायत के आगामी चुनाव में आरक्षण की नीति पर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। न्यायालय के इस फैसले ने कईयों के चेहरे पर मायूसी तो कईयों के चेहरों पर चमक ला दी है।
सोमवार को अदालत ने फैसला देते हुए कहा कि पंचायत चुनाव में वर्ष 2015 में हुए आरक्षण को आधार बनाकर ही आरक्षण सूची तैयार की जाये। उच्च न्यायालय इलाहाबाद की लखनऊ बेंच का यह फैसला प्रदेश सरकार के लिए किसी झटके से कम नहीं है।
अब इस निर्णय के बाद आरक्षण सूची एक बार फिर से बनेगी। आशा की जा रही है कि अब एक बार सीटों की अदला बदली होगी और कई क्षेत्रों में चुनावी समीकरण बदल जायेंगे।
उल्लेखनीय है कि अजय कुमार ने राज्य सरकार के 11 फरवरी 2011 के शासनादेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। याचिका में कहा गया था कि इस बार की आरक्षण सूची 1995 के आधार पर जारी की जा रही है, जबकि 2015 को आधार वर्ष बनाकर आरक्षण सूची जारी की जानी चाहिये। जिस पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने अंतिम आरक्षण सूची जारी किए जाने पर रोक लगा दी थी।
उच्च न्यायालय ने अजय कुमार द्वारा दाखिल याचिका पर फैसला सुनाते हुए राज्य सरकार और राज्य चुनाव आयोग से कहा कि 2015 को आरक्षण का आधार वर्ष मानकर ही काम किया जाए। इससे पूर्व राज्य सरकार ने न्यायालय में कहा कि वह 2015 को आधार वर्ष मानकर त्रिस्तरीय चुनाव में आरक्षण की व्यवस्था लागू करने को तैयार है।
इसके साथ ही न्यायालय ने पंचायत चुनाव को 25 मई तक पूरा करने के आदेश दिये हैं। न्यायालय ने कहा है कि 27 मार्च तक आरक्षण सूची भी फाइनल हो जाना चाहिये।
बताते चलें कि आरक्षण सूची जारी होने के बाद अनेक प्रत्याशी अपनी दावेदारी में जूट गये थे और जिनके हाथ इस आरक्षण सूची से मायूसी लगी थी, अब वे उम्मीद लगाए बैठे हैं कि शायद नई व्यवस्था से कुछ बदलाव हो जाए। सीटों का उलटफेर हुआ तो शायद उन्हें अपनी मनमाफिक सीट से चुनावी मैदान में उतरने का मौका मिल जाये। वहीं अनेकों दावेदारों को बड़ा झटका लगा है जिन्होंने पोस्टर-बैनर छपवाकर प्रचार-प्रसार करना शुरू कर दिया था। उन्हें अब यह डर सताने लगा है कि कहीं नयी आरक्षण में हाथ आई सीट 2015 की आरक्षण व्यवस्था के चलते हाथ से न फिसल जाये।

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