कवि अन्वेषी की नयी रचना

यह मेरा अंतिम सवाल है।
दुनिया में कितना बवाल है ।।
कोई घर में पूड़ी पोता ।
कोई बेमतलब हलाल है ।।

जहाँ जहाँ नजरें दौड़ाओ।
सभी जगह तो बिछी जाल है ।।
कोई रोटी ढूँढ़ रहा है।
कोई कहता कहाँ माल है ।।

हिटलरशाही आ धमकी है।
सुबह शाम करती धमाल है ।।
अफरा तफरी मची हुई है।
दुख में बीता कई साल है ।।

रोज नरक सरियाया जाता।
इसी बात का अब मलाल है ।।
कोई परम हितैषी बनकर ।
हरदम चलता गजब चाल है ।।

इसी बात का अब रोना है।
सब कहते हैं पतन काल है।।
कहाँ हमारा रक्षक बैठा ।
कहाँ हमारा लोकपाल है ।।

लोकतंत्र गफलत में डूबा ।
कौन बजाता यहाँ गाल है ।।
अब मत पूछो मेरे घर का ।
कैसे इतना बुरा हाल है ।।

कैसे यहाँ बिकलता आई ।
कैसे सब होता हलाल है ।।
जटिल प्रश्न है उत्तर दे दो।
तब तो समझूँगा कमाल है ।।

वर्ना प्रश्न रहेगा जिंदा ।
कहाँ कहाँ बैठा दलाल है ।।
भगत सिंह के साथी बोलो।
कैसे बिगड़ा हालचाल है ।।

✍️ अन्वेषी

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