“शुभस्य शिघ्रं” को ही मूलमंत्र मान, करें राम मन्दिर निर्माण का स्वागत

मन के माध्यम से अयोध्या में उपस्थित हो दर्शन पूजन कर करें पुण्यार्जन की प्राप्ति

गाजीपुर। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का जीवन मुहूर्त से परे रहा है। प्रकांड आचार्यों द्वारा शुभ मुहूर्त निकाल कर जब उनके राज तिलक का समय सुनिश्चित किया गया, ठीक उसी समय उन्हें बनवास जाना पड़ा। जो लोक कल्याण का माध्यम बना। ऐसे में उनके मंदिर निर्माण के समय मुहूर्त की चर्चा शुरू करना समझ से परे है। लगभग पिछले 500 वर्षों से श्रीराम जन्मभूमि पर आतताइयों के कब्जे के बाद इस महत्वपूर्ण निर्णय में चर्चाओं को सिरे से नकारते हुए उन्होंने कहा कि शास्त्रों में वर्णित “शुभस्य शिघ्रं” को ही मूल मंत्र मान मंदिर निर्माण का सबको स्वागत करना होगा। हमारे वेद पुराणों में प्राचीन काल से लिखा चला आ रहा है कि इस शुभ कार्य को जितना जल्दी हो सके उसे संपन्न कर देना चाहिए। ऐसे में मुहूर्त संबंधित सभी चर्चाएं गौड़ हो चुकी हैं।
650 वर्ष प्राचीन सिद्धपीठ हथियाराम मठ पर चातुर्मास महायज्ञ कर रहे पीठ के 26 वें पीठाधीश्वर व जूना अखाड़े के वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी भवानीनंदन यति जी महाराज ने बुधवार को कहाकि वर्ष 1528 में मुग़ल आक्रमणकारियों द्वारा राम मंदिर के ऊपर मस्जिद का ढांचा बना दिया गया। तब से लेकर चले आ रहे इस विवाद का पटाक्षेप ही नहीं हुआ बल्कि वर्तमान न्यायिक व प्रशासनिक व्यवस्थाओं द्वारा भगवान श्री राम के मंदिर भव्य मंदिर का निर्माण शुरू कर पूरे हिंदू समाज को गौरवान्वित करने का कार्य किया जा रहा है। इस समय समूचा विश्व इस महान कार्य को होते हुए साक्षी बनने को आतुर है। ऐसे में अपने ही धर्माचार्यों द्वारा मुहूर्त को लेकर बहस शुरू किया जाना चिंतनीय है। उन्होंने समस्त विद्वतजनों के साथ ही आमजन से इस महान कार्य इस समय राम नाम संकीर्तन का उद्घोष करते हुए भगवत पूजन अर्चन में समय व्यतीत करने का आह्वान किया।
वर्तमान परिस्थिति में शिलान्यास के अवसर पर उपस्थिति व आमंत्रण सम्बन्धित अन्य विषयों के संबंध में जवाब देते हुए उन्होंने कहाकि भगवान राम करोड़ों लोगों के आराध्य ही नहीं बल्कि इस धरा के सबसे महान व्यक्तित्व के रूप में मर्यादा पुरुषोत्तम रहे हैं। उनके मंदिर निर्माण शुभारंभ के अवसर पर सबका उपस्थित हो पाना संभव नहीं है, जबकि वर्तमान समय में वैश्विक महामारी कोरोना के तहत सामाजिक दूरी का पालन करना भी आवश्यक है। ऐसे में सब लोग अपने यथावत स्थानों पर रहते हुए मन के माध्यम से अयोध्या में उपस्थित हो दर्शन पूजन कर पुण्यार्जन की प्राप्ति कर सकते हैं।

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