कविता ! “कसक बस इतनी है दिल में”

“कसक बस इतनी है दिल में”

हुए क्यों दूर हो मुझसे, नहीं तुमसे ये पूछूँगा,
मिली है सीख जो इससे ,संजो कर के मैं रख लूँगा।
अचानक से हुए ओझल, कसक बस इतनी है दिल को,
न कोई है गिला तुमसे, न शिकवा ही मैं रखूँगा।

बयाँ करना जो तुम चाहो, हमें नहीं फर्क पड़ता है,
छुपा के जो रखो दिल में तो भी नहीं कष्ट इसका है।
मुबारक हो खुशी तुमको ,तुम्हें क्या हम तो जी लेंगे,
मुकद्दर ने लिखा जो गम उसे सहना भी पड़ता है।

रहा तुमसे जो है नाता, वही बस रोकता हमको,
ये रिस्तों की जो डोरी है,वही बस टोकती हमको।
न होती रिस्तों की परवाह, दिखा देते तुम्हें हम भी,
ये गैरत चीज कैसी है,सिखा देते ये हम तुमको।

कवि – अशोक राय वत्स
रैनी मऊ उत्तरप्रदेश, मो.नं. 8619668341

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