चामर छंद

चामर छंद

सराहते जिसे सभी, उसे बुरा कहें वही।
गुनाह हो किया सदा, किया न हो भला कभी।।
मिली नहीं कमी उन्हें, इसी लिये दिखे खफा।
सराहने कि बात पे, रहे सदा खफा खफा।।

किया सदा गुनाह तो,इमान क्यों दिखे उन्हें।
रहे सदा दलाल तो, खुशी कहाँ मिले उन्हें।।
दबा दबा भरा सदा, वही करें अलाप हैं।
कमी नहीं दिखा सके, तभी करें विलाप हैं।।

भरा भला हिया कभी, अलाप पे अलाप से।
तभी करें शिकायतें, हिसाब की किसान से।।
दुखी किया सदा हमें, वही सिखा रहे यहाँ।
विधान में दिखे उन्हें, गुनाह की जड़ेंं यहाँ।।

चुरा चुरा भरा सदा, वही हुआ खिलाफ है।
डिगा हमें सका नहीं, तभी करे फसाद है।।
शिकायतें करे वही, किया न हो खता कभी।
मिले खुदा उसे कहाँ, जिसे रहा गुमान ही।।

अशोक राय वत्स ©® स्वरचित
रैनी, मऊ, उत्तरप्रदेश
मो.नं. 8619668341

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