कवि की रचना “मैंने नहीं गाए अभिनन्दन”

“मैंने नहीं गाए अभिनन्दन”

मैं एक छोटा सा रचनाकार, शब्दों की माला बुनता हूँ।
अपने शब्दों के माध्यम से,मैं राज दिलों पर करता हूँ।।
अपने इन शब्दों के द्वारा, सूरज को दीप दिखाता हूँ।
फिर मान मिले या वध हो मेरा ,तनिक नहीं घबराता हूँ।।

तमसा तट पर जन्म लिया, शिक्षा ली राजस्थान में।
आराध्य राम की भक्ति की, कभी झुका न शीश बाजार में।।
मैं जन्मा ऐसे घर में हूँ, शिक्षा जिसका आभूषण है।
इस शिक्षा के बल पर ही मैने ,पाया मान हृदय में है।।

यह कलम उठी जब भी मेरी, कभी सत्य मार्ग से डिगी नहीं।
बाधाएं कितनी भी आई, कायर के माफिक बिकी नहीं।।
बहुतेरे मिले हैं प्रलोभन ,कर्तव्य मार्ग से हटा नहीं।
सरयू गंगा का पानी पी, कभी सत्य मार्ग से भगा नहीं।।

मैंने देखा है नयनों से ,पगचम्पी करने वालों को।
इस पगचम्पी के बल पर ही ,सुशोभित होने वालों को।।
मेरी नजरों के आगे ही ,कई कौवे बुलबुल बन बैठे।
मैंने नहीं ढोई पाग कोई, इसलिए दिनकर से बन बैठे।।

माना कटु आज लिखा मैंने ,लेकिन किंचित है झूठ नहीं।
दरबारों में गाने वालों को, माना इसकी कद्र नहीं।।
मैंने नहीं गाए अभिनन्दन , न हीं शब्दों को बेचा है।
मैंने अपने शब्दों में ही ,भारत का गौरव देखा है।।

           कवि - अशोक राय वत्स
              रैनी, मऊ, उत्तरप्रदेश

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