कविता ! “अहंकार है ध्वस्त हुआ”

“अहंकार है ध्वस्त हुआ”

पहली बार दिखा है मानव, बंद आज प्राचीरों में।
व्याप्त हुआ है भय मन में, है किया कैद प्राचीरों में

जो नित करता था मनमानी , है आज वही हैरान हुआ।
जरा नजर उठा के देखो तो, मानव कैसे निढाल हुआ।।

अपनी मनमानी के आगे, जिसने सबको था दुतकारा।
बना आज बंधक घर में,जिसने था प्रकृति को ललकारा।।

बन्द हुई है मनमानी, ध्यान लगा है ईश्वर में।
जो करता था नित मनमानी, वही लीन हुआ है भक्ति में।।

यद्यपि मानव अपने बल पर, सागर को चीर डालता है।
लेकिन भय से हो ग्रस्त वही, निज रक्षा को चिल्लाता है।।

देख प्रकृति का कुपित रूप , वह आज समर्पण करता है।
घातक मंजर को देख-देख ,दिल उसका आज लरजता है।।

अहंकार है ध्वस्त हुआ, नतमस्तक आज सभी जन हैं।
जो कल तक आँख दिखाते थे,बिलख रहे उनके मन हैं।।

चलो प्रतिज्ञा करें अभी, अब और न होगी बदनामी।
हर पल मान रखेंगे सबका, कभी न होगी मनमानी।।

कवि – अशोक राय वत्स
रैनी ,मऊ , उत्तरप्रदेश
मो.8619668341

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