कवि हौसला अन्वेषी की नवीन रचना

कुदरत से बतियाता चल,
अपना अह॔ मिटाता चल ।
आया है तो इस जीवन में,
खुशबू जरा लुटाता चल ।।

इंसानी वैभव है वैभव,
यही सत्य अपनाता चल ।
सोना चाँदी सब मिट्टी है,
इससे पिंड छुड़ाता चल ।।

मानवता को दिल में रखकर,
भीतर जश्न मनाता चल ।
सूरज चाँद सितारों से तो,
मन का तार मिलाता चल ।।

शुद्ध वायु औ जीवन जल से,
रिश्ता रोज बनाता चल ।
मानव से संबंध बढ़ाकर,
मानव धर्म निभाता चल ।।

ईश्वर अल्ला के बदले में,
सच्चाई समझाता चल ।
छोटे से इस कठिन सफर में,
सच्चाई को गाता चल ।।

मानव में मानवता आए,
ऐसी बात बताता चल ।
नैतिकता के सभी मूल्य को,
दुनिया में फैलाता चल ।।
अन्वेषी

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