ज्योतिरादित्य सिंधिया ने थामा कमल का साथ

नयी दिल्ली, 11 मार्च 2020। मध्य प्रदेश में जारी राजनीतिक घमासान के बीच ज्योतिरादित्य सिंधिया ने आज भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा मुख्यालय में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा की सदस्यता ग्रहण करायी। भाजपाध्यक्ष नड्डा ने पत्रप्रतिनिधियों से कहाकि आज हम सबके लिए बहुत खुशी का विषय है और आज मैं अपनी वरिष्ठतम नेता दिवंगत राजमाता सिंधिया जी को याद कर रहा हूं। उनका भारतीय जनसंघ और भाजपा दोनों पार्टी की स्थापना से लेकर विचारधारा को बढ़ाने में एक बहुत बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘ ज्योतिरादित्य जी आज अपने परिवार में शामिल हो रहे हैं, मैं इनका स्वागत करता हूं और हार्दिक अभिनन्दन भी करता हूं।’’
उल्लेखनीय है कि सिंधिया ने कल मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से भेंट के बाद कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया और उनके समर्थन में ही 22 कांग्रेसी विधायकों ने भी इस्तीफा दे दिया था। इससे प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली 15 महीने पुरानी कांग्रेस सरकार डगमगा रही है।
वहीं सिंधिया के कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद कांग्रेस ने कहा है कि पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते सिंधिया को निष्कासित किया गया है।
राजनीतिक बैठकबाजों का कहना है कि मध्यप्रदेश में 53 वर्षों बाद इतिहास एक बार फिर अपने आपको दोहरा दिया है। करीब 53 वर्ष पूर्व 1967 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया की वजह से कांग्रेस सत्ता से बेदखल हुई थी। अब उनके पोते ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से कमलनाथ सरकार सत्ता से बेदखल होने की ओर अग्रसर है। 1967 में विजयाराजे ने कांग्रेस को अलविदा कहकर स्वतंत्र उम्मीदवार के रुप में लोकसभा चुनाव स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर लड़ा और जीत दर्ज की। अब ज्योतिरदित्य भाजपा से राज्यसभा में जाने वाले हैं।
उल्लेखनीय है कि 1967 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बहुमत हासिल हुआ था, और डी.पी. मिश्रा मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन बाद में कांग्रेस के 36 विधायकों ने विजयाराजे के प्रति अपनी निष्ठा जाहिर की और विपक्ष से जा मिले। डी.पी. मिश्रा को इस्तीफा देना पड़ा था। अब एक बार फिर वही पटकथा लिखी गई है। ज्योतिरादित्य खेमे के 22 कांग्रेसी विधायकों ने इस्तीफा दे दिया है। इस्तीफा स्वीकार होते ही कमलनाथ सरकार विधानसभा में अल्पमत में आ जाएगी। ऐसे में भाजपा कमलनाथ सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाएगी और कमलनाथ सरकार गिर सकती है।
दरअसल, ग्वालियर में 1967 में एक छात्र आंदोलन हुआ था। इस आंदोलन को लेकर राजमाता की उस समय के सीएम डी.पी. मिश्रा से अनबन हो गई थी। उसके बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। बाद में राजमाता सिंधिया गुना संसदीय सीट से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लोकसभा का चुनाव जीत गईं। इसके बाद सिंधिया ने कांग्रेस में फूट का फायदा उठाते हुए 36 विधायकों के समर्थन वाले सतना के गोविंदनारायण सिंह को मुख्यमंत्री बनवाकर प्रदेश में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनवा दी थी। कांग्रेस छोड़ने के बाद राजमाता जनसंघ से जुड़ीं और बाद में भाजपा की फाउंडर सदस्य बनीं। राजमाता को भाजपा का उपाध्यक्ष बनाया गया। 1967 से जुड़ी कहानी आज फिर दोहराई जा रही है।

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