“भारत माता धिक्कार रही”
“भारत माता धिक्कार रही”
दिल्ली को करके लहू लुहान,आई न तुमको तनिक लाज।
आरोपों की झड़ी लगा कर ,कर दी तुमने सब हदें पार।।
जो नित प्रति दंगा भड़काते हैं, वही शांति मार्च भी करते हैं।
जब पुलिस रोकती है उनको, धरना भी वो ही करते हैं।।
कैसे निर्लज ढीठ हो तुम, कैसे यह नाटक करते हो?
सुनकर विलाप माँ बहनों का, तुम तनिक न आहें भरते हो।।
इस माया नगरी का गिरगिट ,मुम्बई से दिल्ली आता है।
खाकर बिरयानी काफिर की, वह तनिक नहीं शर्माता है।।
वो क्या समझेगा दु:ख उनका, जिसने नहीं बेटा खोया है।
अपने नापाक इरादों से, यह बीज उसी ने बोया है।।
कुछ चैनल वालों के क्या कहने, वो भी हैं रोटी सेक रहे।
इन जलती हुई चिताओं में,वो पुरस्कार हैं ढ़ूंढ रहे।।
शर्मिंदा आज भगत होगा, रुह बिस्मिल की रोई होगी।
असफाक उल्ला और शेखर की, भ्रकुटी फिर से तन गई होगी।।
हम साथ लड़े हम साथ सहे, फंदों को चूमा खुशी खुशी।
क्या मोल चुकाया था हमनें,यह सोच के होते होंगे दु:खी।।
मैं पूछ रहा हूँ आज तुम्हें, यदि तुम्हें सुनाई देता हो।
देखो माँ कैसे बिलख रही, यदि तुम्हें दिखाई देता हो।।
कभी सोचा है तुमने दिल से,क्या क्या हम सबने खोया है।
खाकर बिरयानी मुफ्त की, विष आबो क्षवा में घोला है।।
जिस को मारा है धोखे से, रुह उसकी है तुमसे पूछ रही।
क्या मिली खुशी तुमको इससे, उसकी अबला है पूछ रही।।
सुन लो मेरी यह खरी खरी, , यह सब का सब सुनियोजित था।
जो दंगा फैलाया तुमने, वह सब का सब प्रायोजित था।।
तुमने घातक मंसूबों से, गोला बारूद जुटाया था।
बना निशाना निर्दोषों को,कत्ले आम मचाया था।।
कभी सोचा न होगा तुमने, दुनिया तुमको धिक्कारेगी।
जिसने दी थी कभी शरण तुम्हें, वही लात तुम्हारे मारेगी।।
आज हिमालय को घायल कर, शान दिखाते हो अपनी।
जिस दिल्ली ने पाला तुमको, उसे औकात दिखाते हो अपनी।।
तुम जाहिल हो तुम काफिर हो, तुमने ही नाम डुबाया है।
भारत माता धिक्कार रही,क्यों तुमने दूध लजाया है।।
वह देख हिमालय मौन खड़ा, काफिर की इन करतूतों पर।
यदि उथल पुथल हुई इसमें , नहीं एक बचेगा धरती पर।।
कवि - अशोक राय वत्स
रैनी, (मऊ) उत्तरप्रदेश मो.नं.8619668341
सादर प्रकाशनार्थ
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