कविता ! सच्चाई बेकार हो गई

सच्चाई बेकार हो गई,
दुनिया हद के पार हो गई।
पागलपन हो गया करोना,
आजादी बीमार हो गई ।।

अपने घर में छिप कर बोलो,
अभिव्यक्ति लाचार हो गई।
कैसे कह दूँ दिल की बातें,
मजबूरी स्वीकार हो गई ।

पूँजीवादी लोकतंत्र की,
देशभक्ति खूँखार हो गई ।
कहीं गुलामी में अटकी यह,
भारत की सरकार हो गई ।।

व्यवहारों में कहाँ दोस्ती,
वह धंधा व्यापार हो गई ।
सब कहते हैं इस धरती पर,
नैतिकता इनकार हो गई ।

देखो तो नफरत की खेती,
कई गुना इस बार हो गई ।
यह जो रही शराफत अपनी,
वह तो हम पर भार हो गई ।।

सत्यानाशी हवा बह गई,
मुश्किल कई प्रकार हो गई।
कैसे कहूँ कहानी अपनी,
पीड़ा अपरंपार हो गई ।।

कवि – अन्वेषी मो.नं.8657834348

Visits: 38

Leave a Reply