कविता! “यों इजहारे दिल “

“यों इजहारे दिल ”

जैसे तमसा मिली ,गंगा मैया में जाके,
अहिल्या तरी , प्रभु का स्पर्श पा के।
क्यों न आ जाओ तुम भी,मेरे दिल में एक दिन,
हो ये जीवन सफल बस, तुम्हें पास पा के।

न रहेंगे अकेले, जो आ जाओगी तुम,
भुला देंगे गम सब ,जो अपनावोगी तुम।
बताएं हम क्या ,किस कदर चाहते हैं,
मिटा देंगे खुद को, जो ठुकरावोगी तुम।

सुनो बात मेरी ,न हमसा है कोई,
यों इजहारे दिल भी,करेगा न कोई।
जो समझा नहीं , मेरे जजबातों को तो,
तुम कोसोगी खुद को, और मिलेगा न कोई।

तुम कहो तो सही, दिल के अरमान अपने,
यों खफा हो रही हो,क्यों तुम आज हमसे।
बता दो खता इक,यदि तुम हमारी,
हो जाएंगे रुखशत ,दिल ये हार करके।

   रचनाकार - अशोक राय वत्स
        रैनी, मऊ, उत्तरप्रदेश
        मो.न.8619668341

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