कविता ! “अपराध मेरा बस इतना है”

“अपराध मेरा बस इतना है”

अपराध मेरा बस इतना है।
दिल से मैने तुमको चाहा है।।

अपने जैसा निश्छल समझा
और हँसकर गले लगाया है।
पर इस दुनिया के दोहरेपन ने
बस धोखे से मुझे नवाजा है।

अपराध मेरा बस इतना है।
इस दिल ने तुमको पूजा है।।

चाहे कष्ट सहे या दुखी रहा
आभास न किसी को हो पाया।
खुद कंटक पथ पर चला सदा
पर पुष्प बिछाए सबके पथ पर।

अपराध मेरा बस इतना है।
यह दिल मेरा बहुत ही भावुक है।।

सोचो जो सदा पतवार बना
उसके हिस्से बस सैवाल मिला।
जिसने सबको पूजा हर पल
क्यों कर बस उसे संताप मिला।

अपराध मेरा बस इतना है।
मेरा मन गंगा सा पावन है।।

कितनी भी अग्नि परीक्षा लो
तपकर कुंदन सा निखरुंगा।
कितना भी विषवमन करे कोई
मैं तो चन्दन सा महकूंगा।

अपराध मेरा बस इतना है।
मेरे दिल ने सभी को चाहा है।।

       कवि - अशोक राय वत्स
        रैनी (मऊ) उत्तर प्रदेश

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