आखिरी तारीख ! बितते साल का अंतिम पायदान

*नवीन रचना *

साल की आखिरी तारीख,

अक्सर पूछती रह जाती है

गुनाहों की फेहरिस्त

गुनाह जो पूरे साल

किए गए और

उस आखिरी तारीख में

सुधरने की उम्मीद के साथ

नये मुकाम की तलाश में निकल गए

कभी सोचा है

आखिरी वक्त इतना मुश्किल

क्यूं होता है

क्यूं पुराने कैलेंडर को

दीवार से उतारना मुश्किल सा लगता है

शायद इसीलिए की उसके बाद की

कोई नहीं जानता

न अगले दिन की

न अगले साल की

न अगले जनम की

तो इसीलिए ही पुरानी तारीखें

आकर्षित करती हैं

अच्छा लगता है

सालों पहले लौटना

बचपन की तारीखें जीना

क्यूंकि उन्हें जीया जा चुका है

खूबसूरती के साथ

बहुत पहले भी

तो इस आखरी तारीख में

गुजरते हैं बचपन के गलियारे से

और ले आते हैं इक अल्हङ सा नया साल।

कवित्री – पूजा राय

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