पर्यावरण सुरक्षा हेतु सार्थक पहल आवश्यक

नई दिल्ली,05 जून 2018। पर्यावरण से जीवन का अटूट संबंध है। जीवन को सुचारु ढंग से चलाने के लिए पर्यावरण संवर्धन व विकास की नितांत आवश्यकता है। मानव आदि काल से प्राकृतिक पर्यावरण का अभिन्न अंग रहा है। हरे भरे वनों से आच्छादित और श्रृंगारित वसुंधरा पक्षियों के कलरव, कल -कल करती नदियों तथा विभिन्न प्रजातियों के जीव जंतुओं को अपनी असीम ऊर्जा से संरक्षित करती रही है। ऋषियों के गुरुकुल तथा आश्रम उस समय प्राकृतिक वातावरण से भरपूर जंगल में हुआ करते थे। युग परिवर्तन के साथ जैसे-जैसे मानव का विकास होता गया वैसे-वैसे विकास के नाम पर मानव ने आधारभूत व्यवस्था में परिवर्तन करना शुरु कर दिया। आरंभ में पूरी तरह से प्रकृति पर निर्भर रहने वाला मानव तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या की जरुरतों को पूरा करने तथा अपने आधुनिक विकास हेतु प्रकृति से खिलवाड़ शुरु कर दिया। नवीन जीवन पद्धति व आधुनिकता की चाह में मानव ने वन विनाश, खनिज दोहन,भूमिगत जल दोहन, अनावश्यक उर्जा उपयोग तथा प्राकृतिक संसाधनों का शोषण कर प्रकृति को अपने ढंग से परिवर्तित किया जिससे वैश्विक तापन, पर्यावरण प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, भूमि प्रदूषण ,ओजोन परत क्षरण जैसी अनेकों समस्याएं आज मानव के समक्ष सुरसा की भांति मुंह बाये खड़ी हैं, जिससे आज समस्त मानव जाति के समक्ष जीवन का संकट उत्पन्न होता जा रहा है।
पर्यावरण प्रदूषण की बढ़ती समस्या से चिन्तित संयुक्त राष्ट्र संघ ने सन 1972 में स्टॉकहोम (स्वीडन) में विश्व भर के देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया। इसमें 119 देशों ने भाग लिया और पहली बार एक ही पृथ्वी का सिद्धांत मान्य किया। इसी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) का जन्म हुआ तथा प्रति वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस आयोजित करके नागरिकों को प्रदूषण की समस्या से अवगत कराने का निश्चय किया गया। पर्यावरण दिवस का मुख्य उद्देश्य लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाते हुए उनमें प्राकृतिक संरक्षण हेतु प्रेरित करना है ताकि आनेवाली पीढ़ी को भी प्राकृतिक सम्पदा का लाभ मिल सके।
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 19 नवंबर 1986 से पर्यावरण संरक्षण अधिनियम लागू हुआ। सन 1972 अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण सोच का महत्त्वपूर्ण वर्ष था। उस वर्ष 5 जून से 16 जून तक संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में पर्यावरणीय सुरक्षा को लेकर पहला बड़ा आयोजन किया गया। इस सम्मेलन को “कांफेरेंसे ऑन ह्यूमन एनवायरनमेंट” या “स्टॉकहोम कांफेरेंसे” के नाम से भी जाना जाता है। उसका लक्ष्य मानव परिवेश को बचाने और बढ़ाने की चुनौती को हल करने के तरीके के बारे में बुनियादी आधार तैयार करना था। फिर उसी वर्ष 15 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) ने एक प्रस्ताव पारित किया और प्रति वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। यह अटल सत्य है कि यदि हमारा पर्यावरण नहीं बचेगा तो हम भी नहीं बचेंगे। इसलिए पर्यावरण सुरक्षा मानव जीवन बचाने की दिशा में एक ज़रूरी कदम है। विश्व पर्यावरण दिवस हर वर्ष किसी न किसी थीम को लेकर मनाया जाता है और 2018 की थीम “प्लास्टिक प्रदूषण की समाप्ति” रखा गया है। प्लास्टिक का बढ़ता प्रयोग हर रुप में हानिकारक ही है। अतः इसके प्रयोग पर रोक लगाने हेतु लोगों को स्वयं आगे आना होगा। मनुष्यों के मनमानी से प्रदुषित वातावरण से त्रस्त अनेकों जीव-जंतुओं के विलुप्त होने की दर अनुमान से कहीं अधिक है। वैज्ञानिक कहते हैं कि 20,000 से अधिक जीव-जंतु हमेशा के लिए विलुप्त होने की कगार पर हैं। आज गौरैया, गिद्ध जैसे अनेकों जीव मोबाइल टावर के रेडिएशन, इंसेक्टिसाइड, पेस्टिसाइड के इस्तेमाल, अंधाधुंध शिकार, प्रदुषण और ऐसी ही अन्य चीजों से समाप्त के कगार पर हैं। इतना ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में लगभग 55 लाख लोग प्रति वर्ष दूषित हवा के कारण मौत के मुंह में जा रहे हैं, जो कुल मौतों का लगभग 10 प्रतिशत है। अकेले हमारे देश में 12 लाख लोग प्रति वर्ष ज़हरीली हवा के कारण मरते हैं । आज भारत के 11 शहर दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में शामिल हैं। बेहिसाब पानी की बर्बादी के कारण भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है। कुछ इलाकों में गर्मी के मौसम में भूजल स्तर इतना नीचे चला जाता है कि पानी के लिए वाटर-टैंक्स पर निर्भर होना पड़ रहा है। हम पर्यावरण में इतनी अधिक कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ रहे हैं कि समुद्र तक का पानी एसिडिक होता जा रहा है, हमने घर बनाने के लिए इतने जंगल काट दिए हैं कि आज वायुमंडल खतरे में पड़ गया है। इतना ही नहीं बल्कि रासायनिक उर्वरकों के मनमान प्रयोग ने खेतों को इतना ज़हरीला बना दिया है कि उनमे उगने वाली सब्जियां व अन्न भी हानिकारक हो रहे हैं। वायुमंडल में बढ़ रही हानिकारक गैसों से भूमंडलीय गर्मी (Global warming) अब हमें महसूस होने लगी है। करोड़ों सालों से जमे ग्लेशियर्स जितनी तेजी से पिघल रहे हैं उतनी तेजी से कभी नही पिघले थे। इतने पर भी यदि हमने पर्यावरण को बचाने के लिए अभी से प्रयास नहीं शुरू किये तो शायद बाद में हमें इसका मौका भी ना मिले और आगे आने वाली पीढियां हमे इस गलती के लिए कभी माफ़ न करें। इससे बचाव हेतु हमें अपने जीवन के यादगार दिवसों को वृक्षारोपण कर समाज व पर्यावरण हित में कार्य करना होगा। अब हमें भूमिगत जल के नाशक विदेशी यूकेलिप्टस पेड़ों को रोकने का प्रयास करना होगा ।

अब सार्वजनिक स्थानों पर पीपल के वृक्षों का रोपण करेें क्योंकि पीपल कार्बन डाई ऑक्साइड का 100 फिसदी अवशोषक है तो बरगद 80 फिसदी और नीम 75 फिसदी अवशोषक है।
आज पर्यावरण दिवस को सार्थक बनाने हेतु हम प्रण करने की जरूरत है कि हम प्लास्टिक का पूर्ण रुप से वहिष्कार करेंगें, पानी का अनावश्यक दुरुपयोग रोकेंगे, किसानों को खेती में रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर जैविक खाद के उपयोग हेतु प्रेरित करेंगे तभी पर्यावरण सुरक्षित हो सकेगा।

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