कामयाबी ! आस्ट्रेलिया के गोल्डकोस्ट में कॉमनवेल्थ गेम्स के भारोत्तोलन में पूनम ने देश को दिलाया पांचवां स्वर्ण पदक 

वाराणसी (उत्तर प्रदेश) ,8 अप्रैल 2018। प्रतिभा बंधन और रूकावटों के आगे झुकती नहीं बल्कि उन्हें ही झुकने पर मजबूर करती है ,इसे सिद्ध किया है ,रेलवे में टीटीई के पद पर कार्यरत जिले के दादुपुर गांव की पूनम यादव ने।गरीबी, अभावों और मजबूरियों के मध्य सामन्जस्य बनाकर निरन्तर अपने पथ पर आगे बढ़ते हुए पूनम ने आज आस्ट्रेलिया के गोल्डकोस्ट में कॉमनवेल्थ गेम्स के भारोत्तोलन में पांचवां स्वर्ण पदक जीतकर भारत का परचम लहरा दिया।उनकी सफलता से वाराणसी, पूर्वांचल, प्रदेश तथा देश गौरवान्वित हुआ है। पूनम यादव के स्वर्ण पदक जीतने वा वाराणसी के सांसद तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उनको बधाई दी है। किसान कैलाश यादव व उर्मिला की बेटी पूनम ने इससे पूर्व ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेम्स में भारोत्तोलन में कांस्य पदक जीतने के चार वर्ष की मेहनत के बाद आज स्वर्ण पदक अपने नाम कर महिलाओं के लिए एक मिशाल पेश की है। पूनम के स्वर्ण पदक जीतने की जानकारी मिलते ही गांव तथा जिले में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। वाराणसी के दादुपुर गांव की पूनम यादव ने ऑस्ट्रेलिया के गोल्डकोस्ट में चल रहे कॉमनवेल्थ गेम्स में 69 किग्रा में भारोत्तोलन का स्वर्ण पदक जीता। पूनम ने यह पदक कुल 122 किग्रा का वजन उठा कर जीता। पूनम ने स्नैच में 100, क्लीन एंड जर्क में 122 किग्रा वजन उठाया। इससे पूर्व पूनम ने स्कॉटलैंड के ग्लास्गो में हुए कामनवेल्थ में कांस्य पदक जीता था।

पिता कैलाश ने बताया कि एक बार कर्णम मल्लेश्वरी ने ओलंपिक में भारत को पदक दिलाया था ,तभी से मेरा सपना था कि मेरी बेटी भी देश के लिए पदक लाये।पूनम ने उस सपने को साकार कर दिया है।उन्होंने कहा कि घर और खेतो का सारा कामकाज करने वाली पूनम ने 2011 में ग्राउंड जाना शुरू किया पर तब मैं गरीबी के चलते पूरी डाइट भी उसे नहीं दे पाता था कहा कि पूनम वेटलिफ्टिंग के लिए तैयार हो गयी लेकिन उसे विदेश भेजने के पैसे जुटाने के लिए दो भैंसों को बेचा और दोस्तों-परिवारवालो से भी कर्ज लिया था। पूनम ने 2014 ग्लासगो में कॉमनवेल्थ गेम्स में कास्य पदक लाकर अपने प्रयास को सार्थक भी कर दिया। आज उसकी लगन और मेहनत ने देश को स्वर्ण पदक दिलाकर विश्व में भारत की बेटियों की धाक कायम की है जिस पर हमें गर्व है।

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