जज्बे को सलाम ! देश की पहली ‘किन्नर’ न्यायाधीश बनीं  जोयिता मंडल

इंदौर (मध्य प्रदेश)।15 मार्च 2018। अपनी मेहनत लगन और संघर्ष के बल पर एक ट्रांसजेंडर(किन्नर) ने लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि यदि आगे बढ़ने का जज्बा और हौसला रखा जाए तो उम्र और लिंग उसमें कभी बाधा नहीं बन सकता। इसे सिद्ध किया है किन्नर जोइता मंडल ने। 29 वर्षिया जोयिता के लम्बे संघर्षों का सुखद अंत हुआ, जब पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर की सब डिविजनल लीगल सर्विसेज कमेटी ऑफ इस्लामपुर ने लोक अदालत के न्यायाधीश के रूप में उन्हें नियुक्त किया। संघर्षों के बल पर जीवन में कुछ कर गुजरने की तमन्ना लिए जोयिता कहती हैं कि उन्होंने कभी हालात से हारना नहीं सीखा। वह हर मुसीबत को अपने लिए सफलता का नया रास्ता मानती हैं। वे घर,परिवार व समाज की मिली उपेक्षा के बावजूद कभी हार नहीं मानी और संघर्षों के बलबूते समाज सेवा के साथ अपनी पढ़ाई जारी रख किन्नर समुदाय के लिए एक आदर्श बन गयीं। मध्य प्रदेश की व्यावसायिक नगरी इंदौर में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने आईं जोयिता मंडल ने किन्नर समाज और रेड लाइट इलाकों के परिवारों की समस्याओं पर खुलकर चर्चा कर अपने जिंदगी के बीते पलों को भी साझा किया।जोयिता ने अपने बीते दिनों को याद करते हुए कहा कि उनका बचपन तो आम लड़की की तरह बीता। लगभग 18 साल की उम्र में उनका भी मन दुर्गा पूजा के वक्त सजने संवरने का हुआ और वे ब्यूटी पार्लर जा पहुंचीं, लौटकर जब वह घर आई तो घर के लोग बहुत नाराज हुए क्योंकि वे उसे लड़का मानते थे। इसपर उन्हें काफी मार पड़ी और वे चार दिन तक बिस्तर से नहीं उठ सकीं थी। उन्होंने कहा कि जब कॉलेज जाती थी तो सभी मजाक उड़ाया करते थे, जिसके चलते पढ़ाई छोड़ दी और फिर वर्ष 2009 में जोयिता ने वगैर कुछ लिए घर भी छोड़ दिया। घर से निकलकर कहां जाएंगी कुछ भी तय नहीं था और न ही पास में पैसा था। दिनाजपुर पहुंचकर किसी तरह बस अड्डे और रेलवे स्टेशन पर रातें गुजारीं। होटल वाला खाना तक नहीं खिलाता बल्कि पैसे देकर कहता है कि हमें दुआ देकर चले जाओ।दिनाजपुर में हर तरफ से मिली उपेक्षा से तंग आकर वे किन्नरों के डेरे तक जा पहुंची और उनके साथ रहते हुए वही सब करने लगीं जो आम किन्नर करते हैं। वहां बच्चे के पैदा होने पर बधाई गीत गाना, शादी में बहू को बधाई देने जाना के साथ ही साथ उनके नाचने-गाने का दौर शुरू हो गया। लेकिन इन सबके बावजूद उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी।
जोयिता बताती हैं कि समाज सेवा में कदम रखते हुए उन्होंने वर्ष 2010 में दिनाजपुर में किन्नरों के हक के लिए एक संस्था बनाई और फिर बुजुर्गो के लिए वृद्धाश्रम स्थापित किया। रेड लाइट इलाके में रहने वाली महिलाओं, उनके बच्चों के राशन कार्ड, आधार कार्ड बनवाए और उन्हें पढ़ाई के लिए प्रेरित किया। जोयिता ने कठिन परिश्रम और संघर्ष के साथ अपनी पढ़ाई और समाज सेवा का काम जारी रखा।वे कहती हैं कि उन्होंने हालात से हारना नहीं सीखा। वह हर मुसीबत को अपने लिए सफलता का नया रास्ता मानती हैं। वे 14 अप्रैल 2014 को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का जिक्र करते हुए बताती है, “उस फैसले ने किन्नर समाज की जिंदगी में नई रोशनी ला दी है। इस फैसले में उन्हें भी समाज का अंग मानते हुए महिला, पुरुष के साथ तीसरा जेंडर माना गया। इस फैसले ने उन्हें लड़ने के लिए और ताकत दी। संघर्ष से बल पर वे अपने अभियान को जारी रखी।एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें ताकत दी तो आठ जुलाई 2017 का दिन उनके लिए ऐतिहासिक साबित हुआ जब जोयिता के सेवा और समर्पण भाव को देखते हुए पश्चिम बंगाल सरकार ने उन्हें लोक अदालत का न्यायाधीश नियुक्त कर दिया। इस तरह वे देश की पहली ‘किन्नर’ न्यायाधीश हैं। आज उन्हें इस बात का कतई मलाल नहीं है कि वे किन्नर हैं। जो लोग पहले उनका मजाक उड़ाते थे, आज वही लोग उनसे मिलकर गर्व महसूस करते हैं। देश की पहली किन्नर जज ने कहा कि स्कूल छोड़ा, घर छोड़ा और भीख मांगी पर पढ़ाई नहीं छोड़ी।देश की पहली ट्रांसजेंडर जज जोयिता मंडल ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक नजीर पेश की है। उन्होंने कहा कि देश में काफी ट्रांसजेंडर्स ऐसी हैं जिन्हें अगर मौका मिले तो काफी बेहतर कर सकती हैं।

रिपोर्ट – कमल किशोर

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