फिजी का 12वां विश्व हिंदी सम्मेलन सम्पन्न

फिजी से डॉ विजयानन्द की विशेष रिपोर्ट

 फिजी। फिजी गणराज्य के नादी में 12 वें विश्व हिंदी सम्मेलन में भारत सहित अन्य देशों के लगभग 300 हिंदी प्रेमी ,सांसद, मंत्री ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

     गाज़ीपुर के वरिष्ठ साहित्यकार ने बताया कि  दिल्ली से शाम तीन बजे एयर एशिया विमान से वे लोग चलकर लगभग 5 घंटे बाद, कोललमपुर, मलेशिया पहुंचे। वहां लगभग 3 घंटे विश्राम के बाद वायुयान रात को एक बजे फिजी के लिए उड़ा। लगभग 11 घंटे आसमान में रहने के बाद वो सुबह 11 बजे फिजी के नादी एयरपोर्ट पर उतरे। फिजी के नागरिकों ने ढोल, सितार आदि वाद्य यंत्रों से स्वागत गीत गाते हुए सभी का माला पहना कर स्वागत किया। कुछ देर बाद चार्टर्ड बस से सभी लोग हिल्टन होटल की तरफ बढ़े। जहां खिड़की से प्रशांत महासागर की लहरें हमारा स्वागत करती दिखी और वरुण देवता ने अपने जल राशि से भी हमारा स्वागत किया। बस में ही गाइड ने हमें समझा दिया था कि यहां बुला का अर्थ नमस्ते होता है और धन्यवाद का अर्थ बिनाका। दूसरे दिन सुबह जब हम स्नान,ध्यान जलपान के उपरांत कार्यक्रम सभागार में पहुंचे तो हमारे बुला कहने पर वहां के के कर्मचारियों में गजब का हर्षोल्लास दिखा। मंच पर वहां के राष्ट्रपति तथा भारत के विदेश मंत्री विराजमान थे। समारोह का शुभारंभ फिजी के राष्ट्रपति मा. रातू विलीमे काटोनिवेरे और भारत के विदेश मंत्री मा. सुब्रह्मण्यम् जयशंकर ने संयुक्त रूप से किया। भारत का प्रतिनिधिमंडल गृह राज्यमंत्री अजय कुमार मिश्र एवं विदेश राज्य मंत्री वी०मुरलीधरन के नेतृत्व में विशेष विमान से फिजी पहुंचा था। 

          इस विश्व हिंदी सम्मेलन में भारत के अलावा  लगभग 20 देशों के हिंदी प्रतिनिधि शामिल हुए। कुल 15 सत्रों में 15 से 17 फरवरी तक कार्यक्रम संपन्न हुए, जिसमें 10 विषयों पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियां आयोजित की गई। जिसमें वर्तमान परिदृश्य में प्रवासी हिंदी साहित्य पर मुझे भी अतिथि के रूप में बोलने का अवसर मिला। मैंने भारतीय स्वतंत्रता के 75 वर्षों बाद भी भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी न बन पाने एवं मारीशस,फिजी आदि देशों  में हिंदी को अनिवार्य रूप से पढ़ाएं न जाने के कारण प्रवासी भारतीयों के मन के दुख को स्पष्ट किया और बाल साहित्य और बाल मनोविज्ञान के माध्यम से नई पीढ़ी के लिए भारतीय एवं प्रवासी साहित्यकारों द्वारा बाल साहित्य सृजन, पाठ्यक्रमों में शामिल कर नई पीढ़ी को हिंदी के प्रति जागरूक करने तथा प्रवासी भारतीयों के प्रोत्साहन हेतु कुछ और पुरस्कारों,सम्मानों को बढ़ाने की बात कही।

      कार्यक्रम के अंतिम दिन चार्टर्ड बस उसे हमें स्लीपिंग इवेंट ले जाया गया जहां पर्वत श्रृंखलाओं से झर झर कर निर्झर घर रहे थे। फूलों की वादियां अद्भुत ढंग से बने पवन लकड़ी तथा सीमेंट की बनी सड़कें तरह तरह के फूल हमारा स्वागत कर रहे थे। वहां  कैंटीन में हमें जलपान, जूस आदि उपलब्ध कराया गया। उसके बाद हमें दो मंदिरों के भी दर्शन कराए गए, बरसात के साथ साथ हमारी यात्रा भी जारी रही। यहां गन्ने और धान के खेत ही दिखे, नारियल तथा फलों के अन्य वृक्षों से लदा फिजी हमें प्राकृतिक सौंदर्य की अनूठी अनुभूति करा रहा था। वहां के बाजारों में बस रोकी गई और लोगों ने खरीदारी भी की, फिर हम वापस अपने होटलों में आ गए। होटल के कमरे कार्ड से खुलते थे, हम जब कार्यक्रमो में होते तो सफाईकर्मी अपने कार्ड से खोलकर हमारे कमरों की सफाई करते ,सोफ़ा, बिस्तरों से लेकर शौचालय तक फूलों से सजाते। हमारे सभी  बिखरे कपड़ों को ठीक से सहेज कर अलमारी के दराज में रखते। फ्रीज में पानी, दूध तथा अन्य पेय पदार्थों की बोतलें रखी होती ,जब हम रात को खा पीकर दस बजे पहुंचते तो यह सब देखकर आश्चर्य होता था। नल के सामने हाथ कर देने से मौसम के अनुकूल ठंढ़ा, गर्म पानी स्वयं गिरता था। जो फ्लैट हमें आवंटित किए गए, उसमें 3 कमरे थे। चार बिस्तर तथा 2 – 2 शौचालय और स्नानागार थे। बड़ी स्क्रीन का तीन एलईडी टेलीविजन अलग-अलग कमरों में लगा था इसमें कुछ कुल 32 चैनल आते थे। जिसमें भारत का एबीपी गंगा,न्यूज़ ,ज़ी न्यूज़ आदि पानी गर्म करने की मशीन आदि लगी थी।इन कमरों में अकेले रात बिताना एक विशेष अनुभव था। फिजी आकर ऐसा लगा जैसे एक अलग से लघु भारत प्रशांत महासागर के किनारे बसा हुआ है। जिसमें मात्रृभाषा के रूप में फिजी , हिंदी और अंग्रेजी का वर्चस्व है। उत्तर प्रदेश,बिहार तथा मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों से आए गिरमिटिया मजदूरों के वंशज आज भी अपनी भोजपुरी ,हिंदी बोलते हैं, लगता ही नहीं वे भारतीय नहीं हैं,भले उनकी कई पीढ़ियां सैकड़ों बर्षों पूर्व भारत से आई हों। वे जानते हैं कि उनके पूर्वज किस प्रदेश के किस शहर से आए हैं, किंतु वह भारत आने की इच्छा तो अवश्य रखते हैं, लेकिन लंबी दूरी के कारण नहीं आ पाते। तकनीकी दृष्टि से पूरी तरह विकसित फिजी का नगरीय क्षेत्र अपनी मातृभाषा को भरपूर सम्मान देता है। मात्रृभाषा अर्थात वह भाषा जो मां के द्वारा बचपन से अपने बच्चों को सिखाई गई हो ,यहां के लोगों में तो मातृभूमि और मातृभाषा के प्रति अंतर्मन से अनुराग है। भारत की ही तरह संविधान में उल्लेखित करके हिन्दी को छोड़ दिया गया है । हिंदी को अनिवार्य भाषा  बनाया जाना चाहिए। हम लोगों के प्रेरणास्रोत पं०केशरीनाथ त्रिपाठी जी का भी यही मानना था।

 

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