कवि हौशिला अन्वेषी की नयी रचना
किस-किस को समझाएं हम ।
किसको सजग बनाएं हम ।।
नादानी का दौर आ गया।
किसकी कथा सुनाएं हम ।।
एहसानों ने धोखा खाया।
किसको दोष लगाएँ हम ।
बहुत दूर से हवा आ रही।
कैसे उसे हटाएँ हम ।।
सारे सपने चूर हो रहे।
सपना किसे दिखाएं हम।।
किसके दिल में क्या बसता है ।
कैसे थाह लगाएँ हम।।
सबको आज समय ने मारा।
किस-किसको सहलाएं हम।।
नए-नए संकेत मिल रहे।
किसको सही बताएं हम।।
अंधेरे में सूरज बैठा ।
कैसे उसे बुलाएं हम ।।
नफरत को सब पूज रहे हैं।
कितना प्यार लुटाएँ हम।।
सोने वाले गजब सो गए।
कैसे उन्हें जगाएँ हम।।
जागरूक भी दुखी हो गए ।
कितना बिगुल बजाएँ हम।।
किस-किसको समझाएं हम।
किसको सजग बनाएं हम ।।
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