अक्षय नवमी और अमृत फल आंवला का धार्मिक महत्व

गाजीपुर। अक्षय नवमी लक्ष्मीपति भगवान विष्णु को समर्पित पर्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अक्षय नवमी से ही द्वापर युग का प्रारंभ माना गया है। युगावतार भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित अक्षय नवमी प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हिन्दू परंपरानुसार मनायी जाती है। अक्षय नवमी को आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है। इसमें आंवला की ही प्रधानता होती है।
हिन्दू धर्मावलम्बियों के सभी व्रत त्यौहार मानव स्वास्थ्य से जूड़े हैं। आदि काल से ही मानव अपने स्वास्थ्य रक्षा हेतु प्रकृति पर निर्भर रहा है और प्रकृति ने यथा समय अपनी सम्पदा से जीवों का पोषण किया है। इसका भरपूर वर्णन अथर्ववेद व आयुर्वेद में वर्णित है। आधुनिक चिकित्‍सकों के अनुसार आंवला एंटीऑक्‍सीडेंट और पोषक तत्‍वों का प्रचुर स्रोत है। आयुर्वेद के ग्रंथ चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में आंवला को ऊर्जादायक जड़ी बूटी के रूप में वर्णित किया गया है। कार्तिक मास से ठंढ की शुरुआत होती है। ठंढ से बचाव हेतु प्रकृति ने अपना अनमोल खजाना जीव रक्षा हेतु खोला है। इस समय गन्ना, आंवला, ज्वार, बाजरा जैसी स्फूर्ति दायक व उर्जा से भरपूर पदार्थ बहुतायत में मिलते हैं जो पौष्टिकता तथा ऊर्जा से भरपूर होते हैं और शरीर को ठंड से बचाव के साथ ही साथ ऊष्मा व पौष्टिकता प्रदान करते हैं।
आंवला का वानस्‍पतिक नाम फिलैंथस एंबैलिका है और यह फिलैंथेसी वंश का वृक्ष है। इसका सामान्य नाम भारतीय गूज़बैरी, आमलकी तथा संस्‍कृत नाम: धत्री, अृमता, अमृतफल आदि है। आयुर्वेद के अनुसार, आंवलों को शरीर में त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) में संतुलन लाने के लिए जाना जाता है। आंवले में शीत, भारी, रुखा, धातुवर्द्धक और जीवाणु-रोधी और पोषक तत्‍व मौजूद होते हैं। रोगनाशक गुणों के कारण, विटामिन-सी से भरपूर आंवले को अमृत के समान माना जाता है। आंवले का उपयोग ताजे रुप में,शुष्क रुप में,अचार,चटनी, मुरब्बा, अवलेह या जूस के रुप में किया जाता है। यह हर रूप में शरीर के लिए अत्यंत लाभकारी और गुणकारी होता है।
मान्यता है कि शुक्ल पक्ष की आंवला नवमी के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन से मथुरा के लिए गये थे। बताया जाता है कि कंस को मारने से पूर्व श्रीकृष्ण ने उसी दिन ब्रजभूमि के तीन वनों की परिक्रमा की थी। उसके उपलक्ष्य में आज भी लाखों श्रद्धालु ब्रजभूमि की परिक्रमा करते हैं। इसके साथ ही अयोध्या की ऐतिहासिक 24 घंटे की चौदह कोसी परिक्रमा भी अक्षय नवमी से शुरु होती है जिसमें लाखों श्रद्धालु परिक्रमा में भाग लेते हैं। इस दिन आंवला वृक्ष के पूजन का विशेष महत्व है। इस दिन आंवला वृक्ष के नीचे ही भोजन तैयार करने व खाने की महत्ता है। महिलाएं प्रातःकाल नित्यकर्म, स्नान-ध्यान से निवृत्त होकर आंवले के वृक्ष के नीचे पहुंचकर आंवले की विधि पूर्वक पूजा करती हैं। इस दिन आंवले के पेड़ में कच्चा सुत बांध कर घी का दीपक जला कर वृक्ष का पूजन करती हैं। इसके उपरांत वहीं आंवला वृक्ष के नीचे ही परिजनों संग भोजन तैयार किया जाता है। सभी भोजन तैयार करने के बाद उसे आंवला वृक्ष के नीचे रखकर वृक्ष देव को चढ़ाया जाता है और फिर परिजनों- संबंधियों के साथ उस भोजन को खाने की परम्परा है।
इस वर्ष अक्षय नवमी का पर्व वुधवार को ‌मनाया जायेगा। नवमी तिथि 01 नवंबर की औ औररात 01:09 बजे से आरंभ होकर 02 नवंबर की रात्रि 10:53 बजे तक रहेगी।

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