पुण्य तिथि पर याद आये स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पूर्व सांसद सरजू पाण्डेय

सरजू पांडेय के अंदर सत्ता की भूख नहीं सेवा का भाव था : डॉ. सन्तोष कुमार मिश्र

गाजीपुर। पूर्वान्चल के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में सरजू पांडेय का नाम बहुत ही आदर के साथ लिया जाता है। पुरानी पीढ़ी के जिन लोगों ने उनको नजदीक से परखा था वे उनके किस्से सुनाते हुए आज भी रोमांचित हो जाते हैं। 25 अगस्त 1989 को रूस के मॉस्को शहर में इलाज के दौरान उनकी मृत्यु हुई थी तथा अंतिम संस्कार गृहजनपद गाजीपुर में गंगा के किनारे किया गया। उनकी अंतिम यात्रा में जाति , धर्म और दलगत सीमाओं को तोड़कर अविस्मरणीय जनसैलाब उमड़ा था। जनता का प्रेम और सम्मान बिरले नेताओं को ही प्राप्त होता है। सरजू पाण्डेय को अपने जीवनकाल में जनता का भरपूर सम्मान मिला जिसका मूल कारण यह था कि उनके अंदर सत्ता की भूख नहीं सेवा का भाव था। स्वजनों के लिए संग्रह की प्रवृत्ति नहीं बल्कि समाज के लिए समर्पण का भाव था। जब स्वतन्त्रता के पच्चीस वर्ष पूरे होने पर रजत जयंती मनाई जा रही थी तब तत्कालीन सरकार की मुखिया श्रीमती इंदिरा गांधी ने भारत सरकार द्वारा ताम्र पत्र प्रदान किया था जिसे सरजू पाण्डेय ने यह कहते हुए वापस कर दिया कि इस राष्ट्र का नागरिक होने के नाते यह तो मेरा कर्तव्य था। आज का आलम यह है कि श्रेय लेने की होड़ मची है। जिस कार्य को होने देने में लोग बाधक बनते हैं, कार्य पूर्ण होने पर उसका फीता काटकर उस उपलब्धि को अपने खाते में जोड़ते हैं।उनके दिवंगत होने के बाद वह ताम्रपत्र पुनः उनके परिजनों को सुपुर्द कर दिया गया।

देश में आजादी काअमृतमहोत्सव मनाया जा रहा है। स्वतन्त्रता के पावन यज्ञ में योगदान करने वालों का पुण्य स्मरण किया जा रहा है।ऐसे में स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी सरजू पाण्डेय के व्यक्तित्व एवम कृतित्व का पुण्यतिथि के अवसर पर स्मरण अमृतमहोत्सव को पूर्णता देगा तथा एक महानायक के प्रति कृतज्ञता होगी।

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