कवि अशोक राय वत्स की नयी रचना – “मधुमास कहां से लाओगे”
“मधुमास कहां से लाओगे”
ये उम्र बहुत ही नाजुक है जो बोओगे वही काटोगे,
एक नागफनी के बिरवे से तुम आम कहां से पावोगे।
जब पुस्तक चाहिए हाथों में तुमने पत्थर पकड़ाए हैं,
सोचो ऐसे बिरवों में तुम मधुमास कहां से लाओगे।
माली बाग लगाता है मधुर फलों की आशा में,
जिस जिसने रोपी विष बेलें वे सब हैं आज निराशा में।
आरोप लगाने से अच्छा राष्ट्रवाद अपनाओ तुम,
फिर भी न जागे देश प्रेम तो बैठे रहो हताशा में।
मानो न मानो बातें यह तुम पर निर्भर करता है,
तुम आम बनो या नागफनी फर्क न हमको पड़ता है।
हम तो बस राह दिखाते हैं चलना न चलना तुम जानो,
जो न अपनाए राह सही जीवन भर भटकता रहता है।
ये भी जीना कोई जीना है भेड़ों के माफिक रहते हो,
जिस ओर हांक दे चरवाहा उस ओर गमन तुम करते हो।
मानव योनी में जन्म लिया कुछ तो मेधा दौड़ाओ तुम,
मार्ग चुना है अनिष्टकारी इसलिए तुम सबसे कटते हो।
कवि अशोक राय वत्स ©®
रैनी, मऊ, उत्तरप्रदेश
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