पूर्वांचल विश्वविद्यालय : राष्ट्रीय शिक्षा नीति के नाम पर खेल

न राष्ट्रीय न शिक्षा न नीति = राष्ट्रीय शिक्षा नीति . वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय की स्थिति भगवान भरोसे चल रही है। इस समय विश्वविद्यालय की परीक्षाएं आधी पूरी होने को हैं और टाईम टेबल छह बार संशोधित किया जा चुका है।
यह कहना है स्वामी सहजानन्द पीजी कॉलेज गाजीपुर के प्रोफेसर अजय राय का। उन्होंने कहा कि कुलपति महोदया अपने पूरे कार्यकाल में गणेश परिक्रमा में संलग्न हैं और जुलूस के घेरे से बाहर नही निकल पायीं। आधा दर्जन बार बदला जा चुका परीक्षा टाइम टेबल यह दर्शाता है कि वर्तमान समय में विश्वविद्यालय में कोई स्पष्ट, तार्किक तथा समय से निर्णय लेने वाला नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि इस प्रक्रिया में छात्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्टेकहोल्डर हैं। क्या उन्होंने कोई बदलाव चाहा था ? क्या पहली बार विश्वविद्यालय की परीक्षा 7.30 से 10.30 हो रही है ? क्या उनके सलाहकारों ने इस बात का ध्यान रखा कि 12 बजे दोपहरी में छात्रों को वापस जाने में कितनी असुविधा होगी और क्या प्रदेश का कोई अन्य विश्वविद्यालय इस तरह एक महीने में 6 बार अपने टाईम टेबल को संशोधित किया है। ऐसा लगता है कि पूर्वांचल विश्वविद्यालय के कुलपति और उनके सलाहकारों की मंडली का विश्वविविद्यालय के विज़न से कुछ लेना देना नहीं है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति – 2020 के सिलेबस, शिक्षण और परीक्षा व्यवस्था को लेकर इनकी लीपापोती अब जगजाहिर हो चुकी है. मोनिका गर्ग जी की चिट्ठी आती है जिसे तत्काल कॉलेजों को पृष्ठांकित कर दिया जाता है “अब वह इसका भावार्थ समझें और तदनुरूप कार्यवाही करें”. आज तक इन्होंने कॉलेजों को स्नातक प्रथम सेमेस्टर की अनिवार्य वोकेशनल कोर्स/ प्रश्नपत्र की परीक्षा कैसे होगी, परीक्षा होगी या खानापूर्ति कर नंबर चढ़ा दिए जाएंगे, इस विषय मे न तो कोई निर्णय लिया न ही सूचना दी। महाविद्यालयों द्वारा 6 महीने पूर्व प्रेषित वोकेशनल पाठ्यक्रमों को कार्यपरिषद में विचार विमर्श कर उसे पारित कराने का कार्य भी नही हो पाया। यह प्रश्नपत्र कितने अंकों का होगा, थ्योरी होगी या प्रैक्टिकल भी, इसके लिए विश्वविद्यालय की कोई दृष्टि नहीं है, और इस पर इन्हें कोई होमवर्क करने की जरूरत भी नहीं लगती। अब इनकी योजना देखिये, विश्वविद्यालय के 800 कॉलेज अपना पाठ्यक्रम बनाएं, इसकी पढ़ाई कराएं और परीक्षा लें। यह समूची व्यवस्था को स्ववित्तपोषी योजना में तब्दील करने की एक मुहिम लगती है, जहां सम्बद्ध शिक्षकों के वेतनादि अन्य व्ययभार के विषय मे इन्हें कुछ नहीं कहना है। स्ववित्तपोषी व्यवस्था तो आज उच्च शिक्षा का कोढ़ बन कर रह गयी है और विश्वविद्यालय इस विषय में कुछ कहने-सुनने, करने की आवश्यकता नहीं समझता। यह एक पृथक उप-विषय है।
प्रदेश और देश के कई विश्वविद्यालयों ने नई शिक्षा नीति का कार्यान्वयन मुल्तवी कर रखा है। इस नवीन प्रारूप को समझने तथा उपादेयता पूर्वक कार्यान्वित करने के लिए वहां कार्यशालाएं और सेमिनार हो रहे हैं, पर पूर्वांचल विश्वविद्यालय इस मामले में अग्रणी बनने की दौड़ में है।
विश्वविद्यालय की लस्टम-पस्टम व्यवस्था की कुछ बानगी देखें – बिना किसी सुविचारित निर्णय के, और सबसे महत्वपूर्ण स्टेकहोल्डर यानि छात्रों को सूचित किये, उनकी प्रथम सेमेस्टर की परीक्षाओं को एमसीक्यू पैटर्न पर ला दिया गया। प्रक्रिया की विसंगतियों पर विश्वविद्यालय निर्विकार तथा मौन है। स्नातक प्रथम सेमेस्टर इंग्लिश प्रोज एन्ड कंप्यूटर के प्रश्नपत्र में टैगोर पर चार वस्तुनिष्ठ प्रश्न पूछे गए और कई यूनिट्स से कोई प्रश्न नहीं आये. कुलपति महोदया को समाजशास्त्र स्नातक प्रथम सेमेस्टर के प्रश्नपत्र की त्रुटियों और विसंगतियों को लेकर विस्तृत तथ्यपरक प्रतिवेदन दिए गए हैं’, जिनपर कोई ठोस कार्यवाही होती नजर नहीं आ रही।
दुर्भाग्यपूर्ण किन्तु सत्य यह है कि इस विश्वविद्यालय को नई शिक्षा नीति के मूल मंतव्यों के साथ, जो प्रधानमंत्री जी के ड्रीम प्रोजेक्टस में से है, खिलवाड़ करने का ही श्रेय मिलेगा।

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