तुलसी पूजन दिवस आज

वाराणसी। मानव आदि काल से जीवन यापन हेतु व रोगों से छुटकारा पाने के लिए वनस्पतियों पर निर्भर रहा है। हिंदू धर्मशास्त्रों में भी वनस्पतियों को विशेष महत्व दिया गया है।
       इसी क्रम में तुलसी के पौधे को हिन्दू धर्मावलंबियों द्वारा पूजनीय माना जाता है। तुलसी पूजन पौराणिक काल से होता रहा रही है। तुलसी के पौधे की उपयोगिता समझते हुए पच्चीस दिसम्बर को प्रति वर्ष तुलसी पूजन दिवस मनाया जाता है।
     तुलसी के पौधे का धार्मिक, आयुर्वेदिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक महत्त्व बताया गया है।
तुलसी के नियमित सेवन से आलस्य दूर होता है और शरीर में दिनभर स्फूर्ति बनी रहती है। तुलसी के पत्ते एक उत्कृष्ट रसायन एवं रक्तशोधक है। भगवान विष्णु को प्रिय होने के कारण इसको ‘वैष्णवी’ भी कहते हैं।
     स्कन्द पुराण के अनुसार, जिस घर में तुलसी का पौधा होता है वह घर तीर्थ समान पवित्र होता है उस घर में (रोगरूपी) यमदूत नहीं आते। वहीं विज्ञान के अनुसार घर में तुलसी-पौधे लगाने से स्वस्थ वायुमंडल का निर्माण होता है। तुलसी से उड़ते रहने वाला तेल आपको अदृश्य रूप से कांति, ओज और शक्ति से भर देता है । अतः सुबह-शाम तुलसी के नीचे धूप-दीप जलाने से नेत्रज्योति बढ़ती है, श्वास का कष्ट मिटता है। तुलसी के सात पत्ते चबा-चबाकर खाने और पानी-पीने से बल, तेज और स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है।
   तुलसी पूजन विधि – सुबह स्नानादि के बाद घर के स्वच्छ स्थान पर तुलसी के गमले को जमीन से कुछ ऊँचे स्थान पर रखें उसमें यह मंत्र बोलते हुए जल चढायें-
महाप्रसादजननी सर्वसौभाग्यवर्धिनी|
आधि व्याधि हरा नित्यम तुलसी त्वां नमोऽस्तु ते।।
इसके उपरांत‘तुलस्यै नम:’ मंत्र बोलते हुए तिलक करें, अक्षत (चावल) व पुष्प अर्पित करें तथा वस्त्र व कुछ प्रसाद चढायें। दीपक जलाकर आरती करें और तुलसीजी की कम से कम सात परिक्रमा करें। उस शुद्ध वातावरण में शांत बैठकर ईश पूजनादि पूर्ण करें। तुलसी – पत्ते डालकर प्रसाद वितरित करें।
   “तुलसी – नामाष्टक”
वृन्दां वृन्दावनीं विश्वपावनी विश्वपूजिताम् |
पुष्पसारां नन्दिनी च तुलसी कृष्णजीवनीम् ||
एतन्नामाष्टकं चैतत्स्तोत्रं नामार्थसंयुतम् |
य: पठेत्तां च संपूज्य सोऽश्वमेधफलं लभेत् ||
       ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृति खण्ड :२२.३२-३३ में कहा गया है कि जो पुरुष तुलसी की पूजा करके इस नामाष्टक का पाठ करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। गरुड़ पुराण में कहा गया है कि ‘तुलसी का पौधा लगाने, पालन करने, सींचने तथा उसका ध्यान, स्पर्श और गुणगान करने से मनुष्यों के पूर्वजन्मार्जित पाप नष्ट होते हैं। पद्म पुराण के अनुसार ‘जो तुलसी के पूजन आदि का दूसरों को उपदेश देता और स्वयं भी आचरण करता है, वह भगवान श्री लक्ष्मीपति के परम धाम को प्राप्त होता है।
     तुलसी को एक दिव्य औषधि के साथ ही भारतीय धर्म-संस्कृति में प्रत्येक घर की शोभा, संस्कार, पवित्रता तथा धार्मिकता का अनिवार्य प्रतीक  माना गया है।
      वेदों, पुराणों और औषधि-विज्ञान के ग्रंथों में तुलसी के गुणों के आधार पर उसे विभिन्न नाम दिये गये हैं, जैसे – काया को स्थिर रखने से कायस्था, तीव्र प्रभावी होने से तीव्रा, देव गुणों का वास होने से देवदुंदुभि, रोगरूपी दैत्यों की नाशक होने से दैत्यघ्नि, मन, वाणी व कर्म से पवित्रतादायी होने से पावनी, इसके पत्ते पूत (पवित्र) करने वाले होने से पूतपत्री, सबको आसानी से मिलने से सरला, रस (लार) ग्रंथियों को सचेतन करने वाली होने से सुरसा आदि। तुलसी की मंजरी को भिगोकर शरीर पर छींटना रोगों से रक्षा के लिए कवच का काम करता है इसके बीजों में पीले-हरे रंग का उड़नशील तेल होता है, जो त्वचा द्वारा शरीर में प्रविष्ट होकर विभिन्न रोगों से रक्षा करता है। तुलसी की माला धारण करने मात्र से कितनी सारी बीमारियों में लाभ होता है, जीवन में ओज, तेज बना रहता है, रोगप्रतिकारक शक्ति सुदृढ़ रहती है। गले में तुलसी माला पहनने से विद्युत तरंगे निकलती हैं, हृदय पर झूलने वाली तुलसी माला हृदय व फेफड़े को रोगों से बचाती है और रक्त संचार को नियमित रखने में काम करती हैं।
    श्वसन सम्बन्धित बिमारियों के साथ ही साथ हानिकारक रोगाणुओं का नाश करने में भी उपयोगी है। कोरोना में भी इसके काढ़े से जीवनीशक्ति को बल मिलता है और रोग की सक्रियता कम होती है।

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