कार्तिक पूर्णिमा पर सदी के सबसे बड़े ग्रहण पर बन रहा है ‘नीचभंग राजयोग’

वाराणसी। कल 19 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाला चन्द्रग्रहण सदी का सबसे बड़ा चंद्र ग्रहण होगा।
   बताते चलें कि इस वर्ष कई ग्रहण के योग बने थे, जिसमें से दो ग्रहण बीत चुके हैं। वर्ष 2021 का पहला ग्रहण ‘चंद्र ग्रहण’ के रूप में 26 मई 2021 को था तो वहीं इस ग्रहण के 15 दिन बाद वर्ष 2021 का दूसरा ग्रहण, ‘सूर्य ग्रहण’ के रूप में  10 जून 2021 को लगा था। अब वर्ष का तीसरा ग्रहण, चंद्र ग्रहण के रूप में कल पूर्णिमा की तिथि पर 19 नवंबर को लगने जा रहा है।
      वैज्ञानिकों के अनुसार, चंद्र ग्रहण एक खगोलीय घटना है और यह तब बनती है जब सूर्य और चंद्रमा के मध्य पृथ्वी आती है अर्थात पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ने वाली सूर्य की किरणों को अवरोधित करती है।
      ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री के अनुसार   हिन्दू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा को धर्म और ज्योतिष के नज़रिए से बेहद अहम माना गया है और पूर्णिमा के दिन चंद्रग्रहण लगने से इसका महत्व और भी बढ़ गया है। इस दिन कार्तिक मास का समापन भी हो रहा है, इसलिए भी इस चंद्र ग्रहण को महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
    ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री जी का कहना है, “पंचांग के अनुसार ये ग्रहण लगभग प्रात: 11 बजकर 34 मिनट से आरंभ होगा और शाम 05 बजकर 59 मिनट पर समाप्त होगा”
    इस बार का चंद्र ग्रहण वृषभ राशि में लग रहा है। वृषभ राशि में राहु का गोचर बना हुआ है।
इसलिए इस ग्रहण का सर्वाधिक प्रभाव वृषभ राशि पर दिखाई देगा। चंद्र ग्रहण के समय गुरु बृहस्पति मकर राशि में मौजूद रहेंगे, जहां पर शनि देव भी विराजमान हैं। शनि मकर राशि के स्वामी हैं, जबकि मकर राशि को गुरु की नीच राशि माना गया है। ग्रहण के समय गुरु मकर राशि में शनि के साथ युति बनाकर बैठेगें।
      ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब कोई ग्रह अपनी ही राशि में विरामान हो और यह राशि किसी अन्य ग्रह की नीच राशि हो तो ‘नीचभंग राजयोग’ का निर्माण होता है।
      ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री कहते हैं कि गणना के अनुसार चंद्र ग्रहण से 09 घंटे पूर्व सूतक काल आरंभ होता है। इसमें शुभ कार्य वर्जित हैं। गर्भवती महिलाओं को सूतक काल में विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है।
      गौरतलब है कि 19 नवंबर को लगने वाले चंद्र ग्रहण के दौरान सूतक नियमों का पालन नहीं किया जाएगा क्योंकि यह ग्रहण आंशिक ग्रहण है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन लगनेवाले सदी के सबसे बड़ा चंद्र ग्रहण भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सो में दिखाई देगा।       विदेशों में यह अमेरिका, उत्तरी यूरोप, पूर्वी एशिया, ऑस्ट्रेलिया और प्रशांत महासागर क्षेत्र में दिखाई पड़ेगा।
     ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री कहते हैं कि  “कार्तिक पूर्णिमा होने से इस दिन लोग गंगा स्नान करते हैं। दीपदान, अन्न दान आदि करते हैं। इस आंशिक ग्रहण होने से वे ये सभी धार्मिक कार्य सामान्य तरीके से कर सकेंगे। साथ ही पूर्णिमा की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी हैं और इस दिन दान-पुण्य का फल कई जन्मों तक प्राप्त होता है। इस पूरे मास में भगवान विष्णु और महालक्ष्मी की पूजा करने का विधान है क्योंकि इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था”।
      इसके लिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन सुबह पूरे घर की साफ-सफाई करें और मुख्य द्वार की चौखट पर हल्दी का पानी डालें। इसके बाद मुख्य द्वार पर दोनों तरफ हल्दी से स्वास्तिक बनाकर पूजा करें और रंगोली बनाएं। इसके साथ ही आम के पत्तों को तोरण भी लगाएं। ऐसा करने से देवी लक्ष्मी घर में प्रवेश करती हैं और अपनी कृपा घर-परिवार पर बनाए रखती हैं।

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