कवि की नयी रचना – “आ गए बनारस धाम में”

“आ गए बनारस धाम में”

जहां मने दिवाली घाटों पर और होली हो श्मशान में।
हाथ जोड़ नतमस्तक होना आ गए बनारस धाम में।।

रंग रंगीली टेढ़ी मेढ़ी गलियों में खो जाते लोग।
कड़क चाय के प्याले संग दुनिया को समझाते लोग।
जहां गंगा मैया की कल कल और आरती हो हर आंगन में।
हाथ जोड़ नतमस्तक होना आ गए बनारस धाम में।।

मणिकर्णिका की बात निराली आठों पहर चिता जलती।
उन्हीं चिंताओं की भस्मी से बाबा विश्वनाथ आरती सजती।
जहां हर हर गंगे की स्वर लहरी मिल जाती घंटों की धुन में।
हाथ जोड़ नतमस्तक होना आ गए बनारस धाम में।।

ठाठ बाट और चाट निराला मुंह में बीड़ा पान निराला।
अपनापन भी खूब लुटाते जब रचे पान बनारस वाला।
जहां गंगा की अल्हड़ धारा संग पिसे भंग हर घाट पे।
हाथ जोड़ नतमस्तक होना आ गए बनारस धाम में।।

चना चबेना गली गली और साधू संतों का मेला हो।
देख आरती गंगा मां की तन मन सबका डोला हो।
जहां सिल्क साड़ियों संग शिक्षा और गुरु मिलें बहुतायत में।
हाथ जोड़ नतमस्तक होना आ गए बनारस धाम में।।

मृत्यु शैय्या पर लेटे भी बात करें जहां जाने की।
मिल जाती है मुक्ति सभी को देरी है बस आने की।
जहां अंजाने भी प्यार लुटाएं और गाली दें हर बात में।
हाथ जोड़ नतमस्तक होना आ गए बनारस धाम में।।

जहां मने दिवाली घाटों पर और होली हो श्मशान में।
हाथ जोड़ नतमस्तक होना आ गए बनारस धाम में।।

✍️ कवि अशोक राय वत्स ©®
रैनी, मऊ,उत्तरप्रदेश 8619668341

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