हरिहरात्मक यज्ञ के साथ शुरू हुआ रजत जयंती समारोह

महामंडलेश्वर स्वामी सोमेश्वर यति महाराज, महामंडलेश्वर स्वामी परेश यति महाराज व महामंडलेश्वर स्वामी मोहनानंद यति महाराज समारोह में मौजूद

कल आएंगे नेता प्रतिपक्ष रामगोविन्द चौधरी

आचार्य सुरेश त्रिपाठी के आचार्यत्व में काशी के 31 प्रकांड विद्वानों द्वारा शुरू हुआ तीन दिवसीय अनुष्ठान
गाजीपुर। बेसो नदी के रमणीय तट पर स्थित प्रसिद्ध सिद्धपीठ हथियाराम मठ पर 26वें पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी भवाानी नंदन यति महाराज के पीठाधीश्वर पद के 25 वर्ष पूरे होने पर तीन दिवसीय रजत जयंती समारोह का शुभारंभ मंगलवार को पंचांग पूजन, देव आह्वान, गणेश अथर्व के साथ आरम्भ हुआ। काशी के प्रकांड वैदिक विद्वानों द्वारा हरिहरात्मक यज्ञ व धार्मिक अनुष्ठान मंत्रोच्चार के साथ विधि विधान से आरम्भ हुआ। सायं बेला में द्वादश ज्योतिर्लिंग रुद्राभिषेक पूजन संपन्न हुआ जिसमें मुख्य यजमान व पीठाधीश्वर स्वामी भवानीनंदन यतिजी महाराज समस्त अनुष्ठानों में सम्मिलित रहे।
त्रिदिवसीय समारोह में भाग लेने के लिए सिद्धपीठ पर शिष्य श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगी रही। जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी सोमेश्वर यति, महामंडलेश्वर स्वामी परेश यति, महामंडलेश्वर स्वामी मोहनानंद यति उत्तराखंड से चलकर सिद्धपीठ हथियाराम मठ पहुंचे हैं तो वहीं पूर्व कैबिनेट मंत्री व उत्तर प्रदेश विधानसभा नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी बुधवार को सिद्धपीठ पर पहुंचेंगे।
महामंडलेश्वर स्वामी भवानीनंदन यति जी महाराज के निर्देशन में चल रहे सभी धार्मिक अनुष्ठानों के आचार्य सुरेश त्रिपाठी द्वारा काशी के वैदिक विद्वानों के साथ पंचांग पूजन, गणेश पूजन, देव आह्वान के साथ धार्मिक अनुष्ठानों का शुभारंभ किया गया। वैदिक विद्वानों द्वारा विधि-विधान से रुद्राभिषेक के साथ ही महामण्डलेश्वर भवानीनंदन यति द्वारा हरिहरात्मक पूजन एवं उत्तर पूजन किया जा रहा है। प्रवचन में स्वामी भवानीनंदन यति ने कहा कि रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है। रुद्राभिषेक मंत्रों का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में किया गया है। उन्होंने भगवान रुद्र (शिव) के अभिषेक का पौराणिक एवं वैदिक महत्व बताते हुए कहा कि रुद्राभिषेक का मतलब है भगवान रुद्र का अभिषेक यानि कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह पवित्र-स्नान भगवान मृत्युंजय शिव को कराया जाता है। अभिषेक को आजकल रुद्राभिषेक के रुप में ही ज्यादातर जाना जाता है। अभिषेक के कई प्रकार तथा रुप होते हैं। ज्योतिषाचार्य के मुताबिक रुद्राष्टाध्यायी में अन्य मंत्रों के साथ इस मंत्र का भी उल्लेख मिलता है। शिव और रुद्र परस्पर एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। शिव को ही रुद्र कहा जाता है। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दुखों का कारण हैं। रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पटक-से पातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का आशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।
धार्मिक अनुष्ठान के क्रम में शतचंडी अनुष्ठान के सम्बंध में आचार्य सुरेश जी त्रिपाठी ने बताया कि शतचण्डी विधि अनुष्ठान में यंत्रस्थ कलश, श्री गणेश, नवग्रह, मातृका, वास्तु, सप्तऋषि, सप्तचिरंजीव, 64 योगिनी 50 क्षेत्रपाल तथा अन्याय देवताओं का वैदिक पूजन किया गया।
इस दौरान संतोष यादव, आचार्य संजय पाण्डेय, आचार्य बालकृष्ण पांथरी, सर्वेश पाण्डेय, प्राचार्य डॉ रत्नाकर त्रिपाठी, श्रवण तिवारी, आचार्य शरवेंद्र चन्द्र पाण्डेय, दीपक महाराज, लौटू प्रसाद, अंजनी जायसवाल, अरविन्द गुप्ता सहित काफी संख्या में गणमान्य जन उपस्थित रहे।

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