कविता – “इस गणतंत्र का मान रहे”

“इस गणतंत्र का मान रहे”
आजादी जब मिली देश को हर्ष मना था घर घर में,
वर्षों की मन्नत पूर्ण हुई मिष्ठान पका था घर घर में।
बलिदानों से साकार हुआ था सपना अमर शहीदों का,
लहर लहर लहराया तिरंगा पुष्प खिला था हर मन में।

मिली हमें आजादी पर बारी अब संविधान की थी,
मिले सभी को हक समान इसकी माकुल तैयारी थी।
संविधान सभा में सबने अपना अपना काम किया,
तब जा के सन पचास में गणतंत्र की खुशियां आई थी।

संकल्प करें सब मन ही मन इस गणतंत्र का मान रहे,
आए कैसी भी बाधा पर इस लोकतंत्र का मान रहे।
जो पाया है बलिदानों से कहीं चूर चूर हो जाए ना,
हे दाता शक्ति दो इतनी इस गणतंत्र का मान रहे।।
कवि- अशोक राय वत्स
रैनी, मऊ, उत्तरप्रदेश, 8619668341

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