कवि अशोक राय वत्स की नयी रचना “आना नहीं छलावे में”

“आना नहीं छलावे में”

कहीं बहक न जाना साथी गैरों के बहकावे में,
तुम्हें कसम है धरती की तुम आना नहीं भुलावे में।
सत्ता पाने हेतु विरोधी तुमको ढाल बनाएंगे,
हे धरती के वीर पुत्र तुम आना नहीं छलावे में।

कृषक भाइयों गौर करो तुम कौन हमें उकसाता है,
सत्ता लोभी हमसे ही क्यों काम गलत करवाता है।
आंखे खोलो तंद्रा त्यागो सकुनी के पासे पहचानो,
लूटा जिसने वर्षों तक क्यों आज वही भरमाता है।

नौटंकी वालों को देखो बकरा तुम्हें बनाते हैं,
खुद बैठे हैं महलों में और ज्ञान हमें सिखाते हैं।
उनका मकसद बस सत्ता है घड़ियाली उनके आंसू,
नहीं खेत खलिहान गए पर मोहरा तुम्हें बनाते हैं।

(अशोक राय वत्स)©® स्वरचित
रैनी मऊ उत्तरप्रदेश 8619668341

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