शहादत दिवस ! परम वीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद

परम वीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद

       <strong>*डा.ए.के.राय*</strong>

गाजीपुर। आध्यात्मिक, धार्मिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक विरासत संजोये गाजीपुर की उर्वरा धरा ने समय समय पर ऐसे ऐसे लाल पैदा किये हैं, जिन्होंने अपने कर्मों के बल पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। स्वतंत्रता आन्दोलन से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत भी राष्ट्र की रक्षा में अपने आपको समर्पित करनेवाले रणबांकुरों की लम्बी फेहरिस्त है। राष्ट्र की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति देकर राष्ट्र की अमर कीर्ति में चार चांद लगाने वालों में परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद का नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज है।
जिले के जखनियां तहसील अन्तर्गत दुल्लहपुर थाना क्षेत्र के धामुपुर निवासी 32 वर्षीय शहीद वीर अब्दुल हमीद ने अपने अदम्य साहस से अमेरिका के अजेय माने जाने वाले पैटन टैंकों को नेस्तनाबूद कर विश्व में नया इतिहास रच दिया था।
पिता मुहम्मद उस्मान के घर एक जून 1933 को अब्दुल हमीद ने जन्म लिया था। अपनी अदम्य वीरता,साहस और पराक्रम को अपनी ढाल बना वह इक्कीस वर्ष की उम्र मे 27 दिसम्बर 1954 को ग्रेनेडियर इन्फैन्ट्री मे भर्ती हुए थे। अपने साहस और तीब्र मेधा के बल पर कश्मीर मे नियुक्ति के दौरान खतरनाक आतंकी इनायत अली को गिरफ्तार कराने के फलस्वरूप सेना के अधिकारियों ने प्रोन्नति देकर लांस नायक बना दिया। पांच वर्षों की सेवा के बाद उन्हें क्वार्टर मास्टर के पद पर तैनाती दी गयी थी। 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तानी सेना जब अमृतसर को अपने कब्जे मे करने की नियत से बमबारी करती हुई खेमकरन सेक्टर के चिया गांव की ओर बढ़ रही थी। उसी क्षेत्र में मौजूद अब्दुल हमीद ने पाकिस्तानी फौज को आगे बढ़ने से रोकने मे जिस अदम्य साहस का परिचय दिया वह भारत के स्वर्णिम इतिहास के सुनहरे पन्नों मे दर्ज है। दस सितम्बर 1965 को अभेद्य अमेरिकी पैटन टैंको से लैस पाकिस्तानी फौज अपने नापाक इरादों के साथ गोले बरसाते हुए आगे बढ़ रही थी। पाकिस्तानी फौज के मंसूबों को भांप अब्दुल हमीद ने मादरे वतन के लिए कुछ कर गुजरने के जज्बे के साथ उनकी बढ़त रोकने के लिए अभेद्य पैटन टैंक को लक्ष्य कर गोले दागे जिससे पैटन टैंकों की बढ़त थम गयी। किंकर्तव्यविमूढ़ पाकिस्तानी फौज जब तक सम्भलती तब तक गाजीपुर की शहीदी धरती के इस लाल ने एक एक कर तीन पैटन टैंको को अपने गोलों से नेस्तनाबूत कर दिया। अपने अभेद्य टैंकों की दुर्गति देख बौखलाई पाकिस्तानी फौज ने तब अपनी तोपों का मुंह उधर कर दिया जिधर से उनके टैंक को निशाना बना उसे आग के शोलों मे तब्दील किया जा रहा था। अब्दुल हमीद जब अगले पैटन टैंक को निशाना बना रहे थे तभी पाकिस्तानी तोप के निकले गोले से वे शहीद हो गये। अपने फौजी साथी अब्दुल हमीद की हिम्मत को देख भारतीय फौज दुगने उत्साह से दुश्मन टीम पर टूट पड़ी फलस्वरूप पाकिस्तानी सेना को भागना पड़ा। साहस और मंसुबों के धनी इस महावीर को मरणोपरांत 16 सितम्बर 1965 को भारत सरकार ने सेना के सर्वोच्च मेडल “परमवीर चक्र” देने की घोषणा की। गणतंत्र दिवस के अवसर पर 26 जनवरी 1966 को तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति भारत सरकार डा सर्व पल्ली राधा कृष्णन द्वारा उनकी पत्नी रसूलन बीबी को यह सम्मान सौंपा गया।
शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों की यही बाकी निशां होगी

यह कहावत पंजाब के असल उत्तर में जिस स्थान पर अब्दुल हमीद ने वीर गति पायी थी,वहां बनी उनकी समाधि पर दृष्टिगोचर होती है, जहां हर साल दस सितम्बर को मेला आयोजित होता है। उनकी याद मे ही पंजाब के खेमकरन सेक्टर मे पैटन नगर बनाया गया है जहां उस वक्त के पैटन टैंक आज भी नुमाइश के तौर पर रखे गये हैं जिसे देखकर उस वीर की शख्सियत जेहन मे उतर आती है। मरहूम वीर अब्दुल हमीद के शहादत दिवस पर लोग अपना श्रद्धा सुमन अर्पित करने हर वर्ष पहुंचते हैं।
उनके पैतृक गांव मे बने शहीद स्मारक पर प्रति वर्ष दस सितम्बर को समारोह आयोजित कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। अभी तक इस शहीद स्मारक पर देश प्रदेश की अनेकों राजनीतिक हस्तियों के साथ साथ सेना के उच्चाधिकारी गण अपना श्रद्धा सुमन अर्पित कर अपने को गौरवान्वित कर चुके हैं।
देश की सेवा में अपने प्राण न्योछावर करनेवाले ऐसे राष्ट्रभक्त योद्धा को श्रद्धांजलि……

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