प्रेमचंद को पढ़ने का अर्थ अपने समय को जानना है

प्रेमचंद साहित्य संस्थान द्वारा आयोजित समापन सत्र में वक्ताओं ने व्यक्त किए विचार

गाजीपुर। राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय गाज़ीपुर एवं प्रेमचंद साहित्य संस्थान द्वारा आयोजित द्वीसप्ताहिक राष्ट्रीय कार्यशाला प्रेमचंद को कैसे पढ़ें के समापन सत्र में सभी विद्वानों का स्वागत प्रोफेसर शशिकला जयसवाल द्वारा तथा आशीर्वचन प्राचार्य प्रोफेसर डॉ सरिता भारद्वाज द्वारा किया गया। इस 16 दिवसीय कार्यशाला का समाहार डॉ अनिल अविश्रांत जी ने प्रस्तुत किया।
कार्यशाला के समापन सत्र में मुख्य वक्ता प्रसिद्ध आलोचक एवं लेखिका प्रोफेसर रोहिणी अग्रवाल थी। उन्होंने अपनी बात रखते हुए कहा कि-प्रेमचंद आज भी इतने लोकप्रिय क्यों हैं? अगर इस बात पर मैं विश्लेषण करती हूं तो यह पाती हूं कि उनके पात्र जनमानस को अपनी ओर खींचते हैं। उनके पात्रों की विशेषता है उनकी सरलता और उनकी पारदर्शिता। प्रेमचंद को पढ़ने का अर्थ है अपने अंदर छुपे हुए पाखंडी मनुष्य को सामने लाना ।उससे आंख मिलाना और फिर उसकी सत्ता को रौंदते हुए अपने ऊपर शर्मसार होना। प्रेमचंद को पढ़ने का अर्थ है स्वयं को पढ़ना है।हम रोज अखबार पढ़ते हैं कि कितने किसान आत्महत्या कर रहे हैं। इस आत्महत्या को मैं किसानों का प्रतिरोध कहती हूं ठीक उसी तरह से जैसे भगत सिंह कहते थे कि वह पार्लियामेंट में बम इसलिए फोड़ रहे हैं ताकि बहरी सरकार बम के धमाकों से जागे और क्रांतिकारियों की आवाज सुने।
आज किसान जंतर मंतर पर धरना देते हैं।उसके निष्फल होने पर वह आत्महत्या कर रहे हैं। यह इस बहरी सरकार को अपनी कराहो ,चित्कारों ,रुदनो को सुनाने का एक बड़ा तरीका है। प्रेमचंद की रचनाओं से चलकर जब आज हम इस समय में पहुंचते हैं। तो हम यह देखते हैं कि गोदान में होरी को किसान से मजदूर और मजदूर से मजबूर बनना पड़ा।यह एक विघटन शील यात्रा की ओर बहुत प्रमाणित ढंग से संकेतन करते हैं। इसलिए प्रेमचंद को पढ़ने का अर्थ दरअसल प्रेमचंद को पढ़ना नहीं अपने समय को जानना है। इस लिए प्रेमचंद आज कल और आने वाले कल में भी प्रासंगिक रहेंगे।
कार्यक्रम के दूसरे विशिष्ट वक्ता प्रोफ़ेसर गजेंद्र पाठक ( हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय, हैदराबाद) थे। उन्होंने इस विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि-आप कल्पना करें कि शुक्ल जी के इतिहास में एक नहीं.. दो त्रिवेणी है। एक त्रिवेणी है भक्ति आंदोलन की है और दूसरी है लोक जागरण की । रामविलास जी के शब्दों में कहे तो एक दूसरी त्रिवेणी है नवजागरण की । जिसमें तीन लोग हैं। एक भारतेंदु, दूसरे महावीर प्रसाद द्विवेदी और तीसरे प्रेमचंद। शुक्ल जी जिस आधुनिकता के मापदंड निर्मित कर रहे हैं । उस मानदंड के निर्माण में जितनी बड़ी भूमिका भारतेंदु की है। उससे कहीं ज्यादा भूमिका प्रेमचंद की है ।
गोदान का प्रारंभिक दो चार पन्ना याद करें जहां होरी राय साहब के यहां जा रहा है। तो होरी के उस संवाद में साठे पर पार्टी वाली बात है। होरी कहता है कि ६० साल जीने की नौबत नहीं आएगी धनिया। इस पर मुझे आश्चर्य होता है कि वह ६०वर्ष पूरा नहीं करता है और सिर्फ होरी ही ६० साल पूरा नहीं करता है। होरी को बनाने वाले जो कुंभार है अर्थात प्रेमचंद ।वह भी 60 साल पूरा नहीं कर पाते हैं। इन्होंने इतनी अल्प आयु के बावजूद भारतीय हिंदी साहित्य को समृद्ध ही नहीं किया बल्कि चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया। हिंदी साहित्य में इनका योगदान अविस्मरणीय है।
इस कार्यक्रम में अध्यक्षीय व्याख्यान प्रोफेसर सदानंद शाही(निदेशक, प्रेमचंद साहित्य संस्थान गोरखपुर) जी ने दिया। उन्होंने ‘प्रेमचंद को कैसे पढ़ें’ पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि-प्रेमचंद ने जिन समस्याओं पर अपनी लेखनी चलाई है। वह समस्याएं आज भी हमारे सामने मौजूद है। वह सारी विकृतियां आज भी समाज में उसी रूप में व्याप्त है और एक बड़े हिस्से को उत्पीड़ित कर रही हैं और उस उत्पीड़ित समूह को यह महसूस होता है कि प्रेमचंद कहीं न कहीं हमारे दुःख को आवाज देने वाले लेखक है। बहुत बड़ा अंतर आया है ,प्रेमचंद के समय में और आज के समय में खासकर किसान की समस्या को लेकर। प्रेमचंद की सारी कहानियां पढ़ जाइए उनमें प्रेमचंद के किसान दुख में, तकलीफ में भी जीवित रहते हैं ।
हमारे गोदान का होरी है। वह भी मजदूरी करते -करते और विषम परिस्थिति में मर जाता है । सद्गति का जो पात्र है ।वह भी लकड़ी चीरते- चीरते मर जाता है लेकिन शायद ही कोई ऐसा किसान पात्र मिले। जिसने आत्महत्या की हो। क्योंकि किसान का संबंध उत्पादन और सृजन से है और उत्पादन और सृजन से संबंध होने के चलते जीवन से गहरा भरोसा है और उसी भरोसे की वजह से वह पहाड़ जैसी विपत्ति रहते हुए भी विपरीत परिस्थिति झेलते हुए भी इस जीवन को और जीवन के विश्वास को कायम रखना चाहता है ।लेकिन आज हमारा किसान आत्महत्या कर रहा है। तो देखना चाहिए कि किसान प्रेमचंद के समय में हार भले गया हो। लेकिन आत्महत्या नहीं करता।
आज 70 -80 वर्षों में उस जिजीविषा को क्या हो गया। किसान का जो अपराजेय स्वरूप हमको प्रेमचंद की कहानियों में दिखाई पड़ता है, उस अपराजेयता को धक्का लगा है। किसान आज पराजित महसूस कर रहा है। बिना पराजित महसूस किए कोई व्यक्ति, समूह या समुदाय या कोई वर्ग आत्महत्या नहीं करेगा। इसलिए प्रेमचंद जन के पीड़ा को, दुख को, तकलीफ को व्यक्त करने वाले लेखक हैं। जन की संवेदनाओं से जुड़े हुए लेखक हैं। कार्यक्रम का संचालन डॉ निरंजन कुमार यादव द्वारा, मीडिया प्रबंधन प्रभारी डॉ शिवकुमार द्वारा तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ संगीता मौर्य विभागाध्यक्ष हिंदी विभाग ने दिया।

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