राष्ट्रीय कार्यशाला ! “प्रेमचंद की विरासत” पर वक्ताओं ने व्यक्त किया उद्गार

हाशिए पर रहने वालों को प्रेमचंद ने बनाया अपनी कथा का नायक, अपने जीवन्त लेखनी के बल पर अमर है मुंशी प्रेमचंद

गाजीपुर। राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय एवं प्रेमचंद साहित्य संस्थान द्वारा आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला “प्रेमचंद को कैसे पढ़ें” कार्यक्रम में “प्रेमचंद की विरासत” पर विषय पर बोलते हुए डॉ कमलेश वर्मा ने कहा कि विरासत का अर्थ होता है कोई ऐसी बस्तु अथवा संपत्ति जिसे हम अपने अपनी आने वाली पीढ़ी को देते हैं। प्रेमचंद की विरासत उनका विपुल रचना संसार है। प्रेमचंद अपनी रचनाओं के माध्यम से मानवीय समाज को और बेहतर बनाने की परिकल्पना करते है ।मनुष्य के साथ-साथ अन्य जीवो के प्रति भी संवेदनशील बनने की अपील करते हैं। समाज की विभाजनकारी शक्तियां जैसे जातिवाद, संप्रदायवाद आदि संकीर्णन से ऊपर उठकर मानवीय स्तर पर एक दूसरे को समझते हुए एक दूसरे के सहयोगी बनाते हैं।
डॉक्टर वर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि इस तरह के आयोजन बहुत कम होते हैं। प्रेमचन्द को सम्पूर्णता के साथ एक कार्यक्रम में समझने की जो परिकल्पना डॉ निरंजन कुमार यादव ने की है, वह सराहनीय है। जब लोग सिर्फ अपनी चिंता में लगे हुए हैं ऐसे समय में सबकी चिंता करने वाले लेखक को याद करने से ही इस कार्यशाला की प्रासंगिकता स्वतः सिद्ध हो जाती है। प्रेमचन्द हिंदी उपन्यास के एक क्लासिकल रचनाकार है वह जितना अपने परवर्ती लेखकों के लिए आदरणीय हैं उतने ही पाठकों के लिए भी। आज वर्तमान समय में भी जितने पाठक प्रेमचंद के पास है उतने किसी दूसरे अन्य लेखक के पास नहीं हैं। प्रेमचंद शुरू से ही साहित्य के मिजाज और मयार की कसौटी को बदलने का उद्गम किया। जिसके लिए उन्हें ढेर सारी आलोचनाओं का शिकार भी होना पड़ा। प्रेमचंद की विरासत के लिए सिर्फ उनका प्रगतिशील लेखक संघ में दिए गए भाषण को पढ़कर ही हम जान सकते हैं, कि उनकी विरासत क्या है!आज जब पूरी पत्रकारिता और साहित्य जगत सत्ता के गलियारों का चक्कर लगाते है,उनकी चापलूसी में जी हुजूरी कर रहे है तब प्रेमचंद की विरासत का महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है। प्रेमचंद की विरासत सोने वाले,धन कमाने वाले और चाटुकार लेखकों की जमा जमात खड़ी करने वाली नहीं है वह जगने वाली और जगाने वाली जमात है। समाज राजनीति और साहित्य में जो कुछ भी नहीं होना चाहिए, जो कुछ भी अव्यवहारिक है उस पर सवाल खड़े करना,उनको सबके सामने रखना प्रेमचंद की विरासत है।प्रेमचंद सिर्फ आलोचना के लिए आलोचना नहीं करते वह देश की जिस व्यवस्था एवं रूढ़ियों को अपने कथा के माध्यम से सामने प्रस्तुत करते हैं उसका एक उद्देश्य यह भी है कि वह उस कमियों को दूर कर अपने राष्ट्र को सुंदर बनाना चाहते है। प्रेमचंद का स्पष्ट मानना है कि जिसकी हम चिंता करें उसकी आलोचना भी करें। प्रेमचंद अपनी कथा के माध्यम से अपने समय और समाज के सबसे बड़े आलोचक हैं। उनकी विरासत या उन उनकी ताकत को हम उनके कथा साहित्य के माध्यम से ही निकाल सकते हैं। प्रेमचंद अपने विषय वस्तु के सच तक पहुंचते हैं तथा उस को उजागर करने में तनिक भी संकोच अथवा गुंजाइश नहीं करते ।दूसरी बात उनकी मनोविज्ञान की समझ बहुत अच्छी है । वह अपने पात्रों के चरित्र निर्माण में अपना मनोविज्ञान भी लगाते हैं। और सबसे महत्वपूर्ण बात उनकी भाषा है उनकी भाषा देशीयता का पुट लिए हुए हैं,जो पात्र जहां का है उसी भाषा में बात करता है। यह हिंदी कथा साहित्य के लिए एक नया प्रयोग था। खड़ी बोली का परिष्कार तो महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा हुआ लेकिन हिंदी गद्य में उसकी स्थापना और उसकी सर्व स्वीकृत प्रेमचंद के द्वारा प्राप्त हुई ।यदि हमें अब भी अपने देश समाज एवं खुद को बेहतर बनाना है तो प्रेमचंद की विरासत अपनाना होगा ।जहां पर कर्म की महत्ता सर्वाधिक है। किसान, स्त्री, वृद्ध, मजदूर, बच्चे, दलित आज जो समाज के हाशिए पर रहने वाले लोग हैं उन्हें प्रेमचंद ने अपनी कथा का नायक बनाने वाले कथाकार हैं।
कार्यशाला के दूसरे सत्र में प्रतिभागियों ने देश समाज एवं राष्ट्र संबंधित बहुत सारे प्रश्नों और जिज्ञासाओं को रखा जिसका समुचित उत्तर डॉक्टर कमलेश वर्मा ने दिया। कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर निरंजन कुमार यादव ने तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ संगीता मौर्य ने किया।

Visits: 59

Leave a Reply