“श्यालों को मिलती कोख कहाँ”

“श्यालों को मिलती कोख कहाँ”

पहन ताज महाशक्ति का जिसने भी अहंकार पाला।
इतिहास साक्षी है इसका, वह दबे पांव रण से भागा।।
हम नहीं तोड़ते समझौते गद्दारी न हमारा गहना है।
इस पर भी आँख दिखाए कोई तो उसे कभी न सहना है।।

हम शांत भाव रखने वाले अपनी हद में ही रहते हैं।
पर करे घात कोई पीछे से तो उसे हताहत करते हैं।
हम वंशज हैं उस राणा के जिसने रण में इतिहास रचा।
सिर काट काट शत्रु दल के जिसने लहू से बलिदान लिखा।।

कुछ चपटे नाटे उद्दंडी बालक झगड़ा करने को आते हैं।
लगता है उनको ज्ञात नहीं मृत्यु से आँख मिलाते हैं।।
कोई तो उनको समझा दे ये वैर भाव है ठीक नहीं।
सह जाए वार इन शेरों का दुनिया में ऐसा वीर नहीं।।

श्री राम प्रभु के वंशज हैं निज वैरी को गले लगा लेंगे।
गर लांघी उसने कभी मर्यादा रण बीच वंश मिटा देंगे।।
शत्रु कितना भी रहे अधम हम उसको मौका देते हैं।
गर गुनाह पूर्ण हो जाते हैं सिर धड़ से अलग कर देते हैं।।

जब तक न कोई छेड़े हमें मर्यादा पालन करते हैं।
फिर भी शकुनी सी चाल चले तो मर्दन उसका करते हैं।।
हममें शक्ति है अर्जुन की और तेज भीष्म के बाणों का।
सामर्थ्य कहाँ है ड्रैगन में सह जाए प्रहार इन तोपों का।।

गर रहे कोई प्रेमी बन के हम रखें चन्द्र सी शीतलता ।
षड्यंत्र रचें और करें घात वो सहें अग्नि की भीषणता।।
हम हैं शेखर से स्वाभिमानी जीते हैं अपनी शर्तों पर।
श्यालों को मिलती कोख कहाँ आघात करें इन शेरों पर।।

कवि – अशोक राय वत्स©® स्वरचित
रैनी, मऊ ,उत्तरप्रदेश।
8619668341

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