कविता ! “भुला दिया कर्ज को”

“भुला दिया कर्ज को”

दया नहीं आई जिन्हें, अपने कुकृत्य पर,
मारते रहे हैं सदा, अपने वजूद को।
लील गए प्राण आज,हथिनी और कोख के,
कोख में वे मारते हैं,अपने ही खून को।
दया की क्या आश करें, अधर्मी दुष्ट नीच से,
घोंट घोंट मार रहे, नित प्रति खून को।
धोखे से हैं छीन लिए, प्राण एक निरीह के
नहीं जहाँ संवेदना, मारो ऐसे ध्रूत को।

गजरानी चली गई, कोख भी उजड़ गई,
दरिया भी डर गया, देख उस मर्ज को।
काँप उठी धरती भी,मानवीय कृत्य पर,
हिल गया आसमान, देख उस दर्द को।
कहाँ गया प्रेम आज,कहाँ गया स्नेह सब,
वसुंधरा धिक्कारती , मार दिया गर्भ को।
पूछ रही वादियां भी, क्या खूब है सिला दिया,
दशों दिशा कराहती , भुला दिया कर्ज को।

कवि – अशोक राय वत्स ©® स्वरचित
रैनी, मऊ, उत्तरप्रदेश मो.नं. 8619668341

Visits: 69

Leave a Reply