मनहरण घनाक्षरी छंद “प्रमाद आ गया उन्हें”

मनहरण घनाक्षरी छंद
“प्रमाद आ गया उन्हें”

लगे हुए सभी यहाँ बड़े बड़े प्रसंग में।
विद्वता बखानते भले रहें कुसंग में।।
जिनके अल्प ज्ञान से ये नीतियाँ बनी यहाँ।
श्रेष्ठ हैं बने हुए कूनीतियों से वे यहाँ।।
अपने अल्प ज्ञान से जो शेखियां दिखा रहे।
कुतर्क पे कुतर्क से बात हैं बना रहे।।
झूठ बोल बोल कर जो रोटियां हैं सेकते।
वही खड़े खड़े यहाँ ‘बोल’ रहे बेचते।।
मान क्या मिला उन्हें प्रमाद आ गया उन्हें।
भारती की आरती की याद न रही उन्हें।।

        कवि - अशोक राय वत्स
           रैनी, मऊ , उत्तरप्रदेश

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