सोम रस पर कवि की नयी रचना… “बन बैठे हैं भेंड़ सभी”

“बन बैठे हैं भेंड़ सभी”

कल तक थे जो सिसक रहे,नहीं पास कछु खाने को।
आज खड़े हैं लाइन में,वही मदिरा को पाने को।।

जब से खुले ये मदिरालय,गदर कट गया लेने को।
पैसा लेकर खड़े सभी, बस मदिरा ही लेने को।।

राजा हो या रंक यहाँ, सभी पड़े थे सुस्ती में।
देख रंग फिर से मदिरा का, झूम रहे सब मस्ती में।।

भूल गए हैं नियम सब,धक्कम पेली करें सभी।
पीने को मिल जाए मदिरा, इसीलिए हैं खड़े सभी।।

मोहताज पड़े थे जो दानों को, वो भी धन कुबेर हैं अब।
देखो मदिरा के खातिर, कैसे गले लगे हैं सब।।

मदिरा पीने की इच्छा ने, आज मिटाए भेद सभी।
मदिरालय के खुलते ही, बन बैठे हैं भेंड़ सभी।।

    कवि - अशोक राय वत्स
       रैनी, मऊ, उत्तरप्रदेश।
        मो.नं.8619668341

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