कविता !”लला श्रीराम की मुक्ति”
“लला श्रीराम की मुक्ति”
बनाओ भव्य मंदिर तुम, दिवाली फिर से आई है।
लला श्रीराम की मुक्ति, शहादत दे के पाई है।।
अयोध्या हो रही जगमग ,खुशी चहुं ओर छाई है।
पका मिष्ठान घर-घर में,बधाई सबने गाई है।।
जले हर घर में दीपक हैं,खुशी हर दिल में छाई है।
इमाम-ए-हिन्द के चेहरे पर ,रौनक फिर से आई है।।
अवध में मुद्दतों के बाद ,यह खुशहाली आई है।
मिटा के सब विवादों को, न्याय की खुशबू छाई है।।
मिटा है तम अवधपुर से ,प्रगति की किरणें बिखरी हैं।
इस कलयुग में भी सतयुग की सुहानी शाम आई है।।
सरयु तट की रौनक भी, यही पैगाम लाई है।
अवधपुर की फिजां में ,फिर से बहारे शाम आई है।।
करो श्रमदान इस ढंग से, मिटे सब बैर कौमों का।
रहे प्रभु राम की गरिमा , मिटे हर भाव गैरों का।।
रखो बस ध्यान तुम इतना, झलक हट के दिखे इसकी।
निहारें विश्वकर्मा भी ,भव्यता ऐसी हो इसकी।।
बनाओ भव्य मंदिर तुम, दिवली फिर से आई है।
लला श्रीराम की मुक्ति ,शहादत दे के पाई है।।
- रचनाकार – अशोक राय वत्स © स्वरचित
रैनी, मऊ उत्तरप्रदेश
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