रामलीला ! जयन्त नेत्र भंग व सीता अनुसुईया संवाद संग मनी..

गाजीपुर (उत्तर प्रदेश),14 अक्टुबर 2018। अति प्राचीन रामलीला कमेटी हरिशंकरी के तत्वाधान में लीला के कालाकारों द्वारा स्थानीय अर्बन बैक के निकट राजा शम्भूनाथ के बाग में जयन्त नेत्र भंग, ऋषि अत्रिमिलन व सीता अनुसुईया संवाद का मंचन किया गया। यह प्रसंग उस समय का है,जब श्रीराम अपने भ्रार्या सीता व अपने भाई लक्ष्मण के साथ वनवास में चित्रकुट पहुॅचकर विश्राम करते है और फिर बाग में जाकर सुगन्धित पुष्पों को तोड़कर लाते हैं और अपनी भार्या सीता के सिंगार हेतु बाल में पुष्प को लगाते है कि इतने में देवराज इन्द्र का पुत्र कौअे का रुप धारण करके सीताजी के कोमल चरण मे चोंच मारकर भागता है। सीताजी के चरणों मे रुधिर को बहता देखकर श्रीराम घबराते हैं और धनुष पर तीर चढ़ाते हुए दुष्ट कौअे का पीछा करने दौड़ पड़े। जब कौअे ने श्रीराम को पीछा करते देखा तो वह घबराकर, ब्रम्हा, विष्णु व महेश के पास जाकर बताता है कि मैने श्रीराम के बल को देखने के लिए उनके भार्या सीता के चरणों में चोंच मार दिया, जिससे उनके चरण से रुधिर बहने लगा। अब श्रीराम जी हमारा पीछा करते आ रहे है। आपलोग हमारी सहायता करे, इतना सुनकर तीनों देवता सहायता तो दूर उनको बैठने नहीं दिया, तब वह निराश होकर वहां से भागने लगता है तो कुछ दूर जाने पर रास्ते में देवर्षि नारद जी मिलते है। कौअे ने नारद जी से भी उक्त बातों को बताते हुए उनसे सहायता मागता है, जिसे सुनकर नारदजी ने कहा कि श्रीराम से बैर करके तुमने बहुत भारी पाप किया है। अतः तुम्हारा मदद कोई नही कर सकता है, सिवाय श्रीराम के । अब तुम उन्ही के शरण में जाओ, वही तुम पर दया करेंगे। नारदजी के बातों को सुनकर इन्द्रराज का पुत्र कौआ श्रीराम के पास जाकर अपनी गलती की क्षमा याचना करता है। उसके क्षमा मांगने पर प्रभु श्रीराम दया करते हुए उसका एक आंख अपने तीर से फोड़ देते हैं। लीला के दौरान प्रभु श्रीराम चित्रकुट से आगे चलकर ऋषि अत्रिमुनि के आश्रम के समीप पहुॅचते हैं, जहाॅ पुलत्स ऋषि गेट पर श्रीराम, सीता, लक्ष्मण एवं निषाद राज को देखा। उनके आने की सूचना ऋषिवर ने अत्रि ऋषि को दिया। ऋषि अत्रि श्रीराम के आने की सूचना सुनकर पुलत्स ऋषि से आदर पूर्वक बुलाकर उनका स्तुति नमामि भक्त वत्सलम्, कृपालशील कोमल, भजामि ते पदाम् भुजम् अकामिनाम स्वधातकम् से स्तुति करते हुए उन्हे आसन देते है। श्रीराम लक्ष्मण सीता अपने चरणों को धूलकर उनके दिये हुए आसन पर विराजमान होते है तथा जब ऋषिवर ने निषाद राज को आसन देकर बैठने का आदेश दिया तो निषाद राज ने कहा कि ऋषिवर मै तो नीच जाति का हॅॅू। इतना सुनने के बाद ऋषि अत्रि ने कहा , जो श्रीराम का मित्र हो वह नीच कैसे हो सकता है। अतः तुम आसन पर विराजमान हो जाओं। इतनी बात सुनते ही निषादराज मुनि को दण्डवत करते हुए आसन पर विराजमान हो जाता है। ऋषि अत्रि मुनि ने अपनी पत्नी अनुसुईया को बुलाकर सीता को अन्दर ले जाने का आदेश देते है। ऋषि पत्नी अनुसुईया ने सीताजी को अन्दर ले जाकर वस्त्र तथा आभूषण देकर उनका सम्मान करते हुए नारी धर्म के बारे में शिक्षा देती है। कहती है कि एकै धर्म एक व्रत नेमा, काय बचन मन पति पद प्रेमा। हे पुत्री जो स्त्री अपने पति के चरणरज की सेवा करे, वही नारी पतिव्रता कहलाती है, और ऋषि पत्नी ने सीता को दूसरे में कहती है, कि जो नारी ऐसे पतिकर किये अपमाना, नारी पाय यमपुर दुःख नाना। जो नारी अपने पति का अपमान व धोखा देती है तथा अनादर करती है वह यमपुरी में जाकर यमराज के ताड़ना को सहती है। इसप्रकार ऋषि पत्नी ने सीताजी को नारी धर्म से सम्बन्धित शिक्षा देती है। इस लीला मंचन को देख दर्शक मंत्रमुग्ध होकर हर-हर महादेव तथा जय श्रीराम के नारे से लीला स्थल को गुन्जायमान कर दिया। इस मौके पर सदर एसडीएम शिवशरण रणप्पा, कमेटी के अध्यक्ष दीनानाथ गुप्ता, उपाध्यक्ष विनय कुमार सिंह, मंत्री ओमप्रकाश तिवारी उर्फ बच्चा सहित कमेटी के सदस्य गण व श्रद्धालु भक्तजन उपस्थित रहे।

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